प्यासी मोहब्बत





प्यासी मोहब्बत 


दिल का हाल समझ ना पाये , मैं तो निर्बल दासी हूँ ।
नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ  ।।
जिसे समझ कर अपना माना , साथ वही तो छोड़ गए ।
कसमें खाई रहने की जो , मुँह वो अपना मोड़ गए ।।
पड़े अकेले ताँक रही हूँ  , अब केवल वनवासी हूँ ।
नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ ।।

सूखी लकड़ी जैसी काया , कुछ ना अब तो भाता है ।
किसे बताऊँ हाल चाल अब , केवल रोना आता है ।।
भूल गई सब सुध बुध अपना  , अब केवल आभासी हूँ ।
नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati

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