तब कविता बन जाती है

कोयल जब गाती है, मीठी तान सुनाती है ।
अपने मधुर स्वर से,  बागों को गुंजाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
बादल जब गरजता है, बिजली भी चमकती है ।
आसमान में काले काले , घनघोर घटा छा जाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
गाय जब रंभाती है, बछड़े को पिलाती है ।
गोधुली बेला में अपने, पैरों से धूल उड़ाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
घर आँगन में फुदक फुदक कर , चिड़िया जब चहचहाती है ।
पायल की रुनझुन आवाज सुन, गुड़िया रानी खिलखिलाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
बारिश की पहली फुहार ,जब तन मन को भिगाती है।
माटी की सौंधी खुशबू, जब चारों ओर फैल जाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
चलती है मस्त हवाएं जब , बागों से खुशबू आती है ।
कोई चाँद सा चेहरा जब , आँखों में बस जाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
माँ अपने कोमल हाथों से, रोटी जब खिलाती है ।
खुद भूखी रहकर भी जब , बच्चों को दूध पिलाती है ।
तब कविता बन जाती है ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया
8602407353
Mahendra Dewangan Mati

21/03/2018

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