माटी के दोहे -- 2

रोज रोज मारत हवय, गोली पाकिस्तान ।
समझौता ला टोरथे ,  लबरा ओला जान ।।1।।

करजा लेके भाग गे , बड़े बड़े धनवान ।
देखत रहिगे देश हा,  होगे मरे बिहान ।।2।।

करजा मा बूड़े हवय,  छोटे बड़े किसान ।
कइसे छूटन सोंच के,  देवत अपन परान ।।3।।

बोलव भाखा प्रेम के,  सब झन हा मोहाय ।
बनथे बिगड़े काम हा,  मन मा खुशी समाय ।।4।।

करकश बोली बोल के , मत कर तेंहा भेद ।
टुकड़ा टुकड़ा हो जथे,  दिल मा होथे छेद ।।5।।

नशा नाश के जर हरय,  झन कर एकर साद ।
जाथे पइसा मान सब , कर देथे बरबाद ।।6।।

नशा पान जेहा करय,  ओकर नइहे मान ।
उजड़े घर परिवार सब,  जिनगी बिरथा जान ।।7।।

माला पहिरे घेंच मा , धरय साधु के भेस ।
ठग जग करके लोग ला , पहुँचाये जी ठेस ।।8।।

कान्हा खेलय ब्रज मा , राधा डारय रंग ।
बांही पकड़े खींच के  , लिपटावत हे अंग ।।9।।

साफ रखव घर-द्वार ला,रोग तीर नइ आय।
दिन सुग्घर परिवार के,हाँसत बीते जाय।।10।।

रामायण गीता पढ़व , चाहे पढ़व कुरान ।
दया धरम सेवा करव, बनबे तब इंसान ।।11।।

मिलव जुलव सब प्रेम से,  करलव मीठा बात ।
करु वचन कँहू बोलबे,  परही जम के लात ।।12।।

छत्तीसगढ़ी बोल के  , बढ़ावव एकर मान ।
बोले बर झन लाज मर , करव सबो सम्मान ।।13।।

निकले सूरज भोर के, अंजोरी बगराय  ।
चिरई चहके पेड़ मा,  मुरगा बाँग लगाय ।।14।।

समय बड़ा बलवान हे , एकर कीमत जान ।
राजा बनथे रंक जी   ,     एला तेंहा मान ।।15।।

छोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।16।।

गुरू बिना मिलथे कहाँ  , कोनों ला जी ज्ञान ।
करले कतको जाप तैं , चाहे देदव जान ।।17।।

नाम गुरू के जाप कर , तेंहा बारम्बार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के  , होही बेड़ापार ।।18।।

सेवा करले प्रेम से,  एहर जस के काम ।
देही आशीर्वाद सब , होही जग मा नाम ।।19।।

दया धरम उपकार कर , मन के आंखी खोल ।
मिलही इज्जत लोग से,  सबसे मीठा बोल ।।20।।

होरी खेलय ब्रज मा , कान्हा रंग भिगाय ।
पिचकारी ला देख के,  सबझन हा छुप जाय ।।21।।

कान्हा डारे रंग ला , राधा अबड़ लजाय ।
गोप ग्वाल मिलके सबो , बृज मा रास रचाय ।।22।।

कान्हा अइसे रंगथे,  तन मन सबे भिगाय ।
एक बार जब लग जथे, कभू निकल नइ पाय ।।23।।

प्रेम करव संसार से,  सब हे एक समान ।
भेदभाव झन कर कभू,  सबला अपने जान ।।24।।

चारे दिन जीना हवय  , झनकर तैं अभिमान ।
प्रेम भाव ला राख के, करलव जन कल्याण ।।25।।

पानी नइहे गाँव मा , तरिया घलव सुखाय ।
चिन्ता होगे लोग ला , कइसे प्राण बचाय ।।26।।

माते हावय दारु मा , घर के नइहे चेत ।
लइका लोग भुखे मरत , बाँचे नइहे खेत ।।27।।

पीयत हावय दारु ला , लड़ई झगरा होय ।
परथे थपरा जोर से  , माथा धर के रोय ।।28।।

बाढ़त हावय घाम हा , टोटा घलव सुखाय ।
रोवय सब पानी बिना , जीव सबो थर्राय ।।29।।

नदियाँ नरवा सूख गे , तरिया घलव अटाय ।
सुक्खा होगे बोर हा,  कइसे प्यास बुझाय ।।30।।

पानी नइहे खेत मा,  कइसे होही धान ।
माथ धरे बइठे सबो , रोवत हवय किसान ।।31।।

नारी अबला जान मत , दुर्गा के अवतार ।
काली बन के  कूदथे , होथे अत्याचार ।।32।।

झूठ वचन ला छोड़ दे , सत मा हवय प्रकाश ।
जइसे काली रात मा,  निकले चाँद अकाश ।।33।।

जगा जगा बाजा बजय , गावत हावय फाग ।
बाबू गावय जोर से  , लइका झोंकय राग ।।34।।

होरी खेले खोर मा , भैया घर मा आय ।
चिन्हारी नइ आत हे , चिखला मा बोथाय ।।35।।

बैर भाव ला छोड़ के,  सबला रंग लगाव ।
जइसे महके फूल हा, वइसे मया बढ़ाव ।।36।।

सत्य वचन बोलव सदा , झूठ वचन हे पाप ।
संयम राखव जीभ मा,  मिलही पुण्य प्रताप ।।37।।

सादा जीवन होत हे , साधू संत समान ।
लोभ पाप से नइ मिलय , कोनों ला जी ज्ञान ।।38।।

ज्ञान बाँट के सदगुरू , भरथे सब में जोश ।
खाली रहिगे बुद्धि हा  , ओकर काहे दोष ।।39।।

पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।40।।

देथे शिक्षा एक सँग  , गुरुजी बांटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँच समान ।।41।।

महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan Mati
06/03/2018

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