कलिन्दर

कलिन्दर
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वाह रे कलिन्दर , लाल लाल दिखथे अंदर ।
बखरी मा फरे रहिथे  , खाथे अब्बड़ बंदर ।
गरमी के दिन में,  सबला बने सुहाथे ।
नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे ।
बड़े बड़े कलिन्दर हा , बेचाये बर आथे ।
छोटे बड़े सबो मनखे,  बिसा के ले जाथे ।
लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे ।
रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे ।
खाय के फायदा ला , डाक्टर तक बताथे ।
अब्बड़ बिटामिन  मिलथे,  बिमारी हा भगाथे ।
जादा कहूँ खाबे त  , पेट हा तन जाथे ।
एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे ।

महेन्द्र देवांगन माटी
Mahendra Dewangan Mati
10/03/18

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