लिखात नइहे
लिखात नइहे
लिखे बर बइठे हंव , फेर लिखात नइहे ।
गुनत हांवव मने मन , फेर गुनात नइहे ।
एको ठन कविता ला , महूं बना लेतेंव ।
फेसबुक अऊ वाटसप में, तुरते भेज देतेंव ।
सोचत हांवव मने मन , फेर सोंचात नइहे ।
लिखे बर बइठे हंव, फेर लिखात नइहे ।
कोन विषय में लिखंव , एला मय खोजत हंव ।
हास्य लिखव के सिंगार , एला मय सोचत हंव ।
धरहूं कहिथों पेन ला , फेर धरात नइहे ।
लिखे बर बइठे हंव, फेर लिखात नइहे ।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया
8602407353
11/03/18
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