बादर गरजत हे

बादर गरजत हे
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सावन भादो के झड़ी में, बादर ह गरजत हे ।
चमकत हे बिजली,  रहि रहि के बरसत हे ।
डबरा डबरी भरे हाबे , तरिया ह छलकत हे ।
बड़ पूरा हे नदियाँ ह जी , डोंगा ह मलकत हे ।
चारों कोती खेत खार , हरियर हरियर दिखत हे।
लहलहावत हे धान पान, खातू माटी छींचत हे ।
सब के मन झूमत हाबे, कोयली गाना गावत हे।
आवत हाबे राखी तिहार, भाई ल सोरियावत हे।
घेरी बेरी बहिनी मन , सुरता ल लमावत हे ।
आही हमरो भइया कहिके, मने मन मुसकावत हे।

रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"

 Priya dewangan priyu 

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