राम नाम जपले

राम नाम जपले
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राम नाम ल जप ले संगी ,
इही ह काम आही ।
ए जिनगी के नइहे ठिकाना,
कोन बेरा उड़ जाही ।
कतको करबे हाय हाय ते,
काम तोर नइ आये ।
सुख के मितवा सबो हरे,
दुख में सब भाग जाये ।
माया मोह में फंसके तैंहा ,
बिरथा जिनगी गंवाये ,
देखत रही सगा सोदर,
कोनों काम नइ आये ।
फेसबुक अऊ वाटसप में,
हजारों दोस्त बनाये ।
परे रबे जब खटिया में,
कोनों पुछे ल नइ आये ।
सबले बड़े मायाजाल हरे ,
फेसबुक अऊ वाटसप ।
जब तक हाबे नेट पैक जी,
मारले तेंहा गप सप ।
माटी के हरे काया संगी,
माटी में मिल जाही ।
भज ले हरि के नाम जी,
इही काम तोर आही ।

        रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
       पंडरिया

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