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चीन को ललकार

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चीन को चेतावनी (लावणी छंद) आँख दिखाना छोड़ो हमको, नहीं किसी से डरते हैं । हम भारत के वीर सिपाही, कफन बाँध कर लड़ते हैं ।। एक कदम तुम आगे आओ, पैर काट कर रख देंगे। वतन बचाने के खातिर हम,इतिहास नया लिख देंगे।। चलो नहीं अब चाल चीन तुम, हमसे जो टकराओगे। याद करोगे नानी अपनी, पाछे फिर पछताओगे ।। छोटी छोटी आँखें तेरी,  बिल्ली जैसी लगते हो। हाथ मिलाकर भारत से तुम, गद्दारी ही करते हो।। व्यर्थ नहीं जायेगा अब ये , वीरों की यह बलिदानी। बदला लेकर ही छोड़ेंगे, नहीं मिलेगा अब पानी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

आया नया सवेरा

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आया नया सवेरा (दोहा) नया सवेरा आ गया , सबको करुं प्रणाम। आओ मिलजुल कर करें , पूरा हो सब काम।। फूल खिले हैं बाग में , भौरें भी मँडराय । नया सबेरा छा गया , पंछी गाना गाय।। निकला सूरज भोर में , सारा जग चमकाय। नदियाँ कल कल बह रही , झरनें भी लहराय।। धरती माता हँस रही , पत्ते शोर मचाय। तितली रानी उड़ रही , बागों पर इठलाय।। कोयल कूके पेड़ में , मीठी गीत सुनाय। ताजा ताजा फल लगे , सारे मिलकर खाय।। प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया छत्तीसगढ़ Priya Dwangan Priyu

सुरतांजलि

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सुरतांजलि लक्ष्मण मस्तुरिया सुरता आथे रहि रहि मोला, तोर गीत ला गावँव। छत्तीसगढ़ के मयारु बेटा,  तोला माथ नवावँव।। जनम धरे तैं मस्तुरी म , मस्तूरिहा कहाये। बचपन बीतिस खेलकूद मा, लक्ष्मण नाम धराये।। तोर गीत हा सुघ्घर लागे, जन मन मा बस जाथे। संग चलव जब कहिथस तैंहा, कतको झन हा आथे।। अमर करे तैं नाम इँहा के,  माटी के तैं हीरा। गिरे परे हपटे मनखे के, जाने तैंहर पीरा।। अरपा पैरी महानदी कस, निरमल हावय बानी। सब ला मया लुटाये तैंहर, हरिशचंद कस दानी।। छछलत हावय तुमा नार हा, घर घर मा तैं बोंये। सुरता करके आज सबोझन,  अंतस ले गा रोये।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

पानी हे अनमोल

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पानी हे अनमोल पानी हे अनमोल संगी , पानी ल तुम बचावव। सही उपयोग करो मिल के , जादा झन गँवावव।। पानी जिनगी के अधार हरे , येला तुमन जानव। पानी बिन हे जग अंधियार  , येला सबझन मानव।। एक एक बूँद पानी के जी , बहुते हे अनमोल। एक बूंद से जिनगी मिलत , एकर समझो मोल।। पानी से होवत दिन सबो के  , पानी से होवत शाम। गरमी में जो पानी पियाथे , ओकर बाढ़थे मान।। चिरई चिरगुन ल पानी पियाव  , रख दो कटोरी में पानी। पानी नई मिलही कोनो ल , त याद आ जाही नानी।। कु. प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया पंडरिया छत्तीसगढ़

तुलसी मइया

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तुलसी मइया मोर अँगना में हाबे, तुलसी के चँउरा। तीरे तीर खेलत हे, लइका मन भँउरा।। नहा धो के दाई ह, पानी चढ हाथे। संझा बिहनिया रोज, दीया जलाथे।। तुलसी के मंजरी के, परसाद पाथे। ओकर किरपा ले, अब्बड़ सुख पाथे।। तुलसी चँउरा में,  सालिक राम हाबे। कर ले पूजा संगी, आशीरवाद पाबे।। जुड़ खाँसी सरदी, सबला मिटाथे। नियम पुरवक जेहा, पत्ती ल खाथे।। तुलसी मइया के तो , महिमा हे भारी। एकरे सेती घर में, पूजा करथे नर नारी ।। जय जय जय तुलसी मइया, तोर महिमा गावँव। फूल पान नरियर मँय, तोला चढावँव।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

सुखी सवैया

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सुखी सवैया (छत्तीसगढ़ी भाषा में) 112 × 8 + 1 + 1 सिधवा मनखे बनके कतको झन आवत घूमत लूट मचावत। खुसरै घर भीतर फोकट के डउकी लइका मन ला डरवावत। चलथै धर के हथियार घलौ कुछ बोलत हौ तब खून बहावत। परखौ मनखे लबरा मन ला जब बोलय फोकट बात बनावत।। (2) सिधवा मनखे बनके कतको झन आवँय लूट मचावत हावँय। खुसरैं घर भीतर फोकट के लइका मन ला डरवावत हावँय। चलथैं धरके हथियार घलौ कुछ बोलव खून बहावत हावँय। परखौ मनखे लबरा मन ला जब बोलँय बात बनावत हावँय। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

अरविंद सवैया

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अरविंद सवैया  (छत्तीसगढ़ी भाषा में) 112 × 8 + लघु (1) झन लोभ करौ झन पाप करौ झन मारव काटव पुण्य कमाव। रख दीन दुखी बर ध्यान सदा बिगड़ी सबके अब रोज बनाव। हर लौ सबके तन के दुख ला रख प्रेम सदा हिरदे म लगाव। बन के मितवा सबके हितवा रख मान सबो बर प्रेम जगाव।। (2) घर मा रहिके सब काम करौ झन फोकट के अब बैठ पहाव। बिहना उठ के नित दौड़ लगा सब आलस छोड़ नदी म नहाव। कर सूर्य प्रणाम लगा दँड बैठक ध्यान करौ सब रोग भगाव। बनही सबके बिगड़ी मनखे मन के अब आवव भाग जगाव।। (3) पढ़लौ लिखलौ जिनगी गढ़लौ रख मान सबो झन नाम कमाव। सब काम बुता बर हाथ बँटावव देश विदेश ग धाक जमाव। रख लौ कुल इज्जत मान सदा रइही सुख मा परिवार चलाव। चलही जिनगी बनही बिगड़ी मिल काम करौ सब भाग जगाव ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati ( छत्तीसगढ़ी भाषा में)