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पानी हे अनमोल

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पानी हे अनमोल पानी हे अनमोल संगी , पानी ल तुम बचावव। सही उपयोग करो मिल के , जादा झन गँवावव।। पानी जिनगी के अधार हरे , येला तुमन जानव। पानी बिन हे जग अंधियार  , येला सबझन मानव।। एक एक बूँद पानी के जी , बहुते हे अनमोल। एक बूंद से जिनगी मिलत , एकर समझो मोल।। पानी से होवत दिन सबो के  , पानी से होवत शाम। गरमी में जो पानी पियाथे , ओकर बाढ़थे मान।। चिरई चिरगुन ल पानी पियाव  , रख दो कटोरी में पानी। पानी नई मिलही कोनो ल , त याद आ जाही नानी।। कु. प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया पंडरिया छत्तीसगढ़

तुलसी मइया

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तुलसी मइया मोर अँगना में हाबे, तुलसी के चँउरा। तीरे तीर खेलत हे, लइका मन भँउरा।। नहा धो के दाई ह, पानी चढ हाथे। संझा बिहनिया रोज, दीया जलाथे।। तुलसी के मंजरी के, परसाद पाथे। ओकर किरपा ले, अब्बड़ सुख पाथे।। तुलसी चँउरा में,  सालिक राम हाबे। कर ले पूजा संगी, आशीरवाद पाबे।। जुड़ खाँसी सरदी, सबला मिटाथे। नियम पुरवक जेहा, पत्ती ल खाथे।। तुलसी मइया के तो , महिमा हे भारी। एकरे सेती घर में, पूजा करथे नर नारी ।। जय जय जय तुलसी मइया, तोर महिमा गावँव। फूल पान नरियर मँय, तोला चढावँव।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

सुखी सवैया

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सुखी सवैया (छत्तीसगढ़ी भाषा में) 112 × 8 + 1 + 1 सिधवा मनखे बनके कतको झन आवत घूमत लूट मचावत। खुसरै घर भीतर फोकट के डउकी लइका मन ला डरवावत। चलथै धर के हथियार घलौ कुछ बोलत हौ तब खून बहावत। परखौ मनखे लबरा मन ला जब बोलय फोकट बात बनावत।। (2) सिधवा मनखे बनके कतको झन आवँय लूट मचावत हावँय। खुसरैं घर भीतर फोकट के लइका मन ला डरवावत हावँय। चलथैं धरके हथियार घलौ कुछ बोलव खून बहावत हावँय। परखौ मनखे लबरा मन ला जब बोलँय बात बनावत हावँय। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

अरविंद सवैया

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अरविंद सवैया  (छत्तीसगढ़ी भाषा में) 112 × 8 + लघु (1) झन लोभ करौ झन पाप करौ झन मारव काटव पुण्य कमाव। रख दीन दुखी बर ध्यान सदा बिगड़ी सबके अब रोज बनाव। हर लौ सबके तन के दुख ला रख प्रेम सदा हिरदे म लगाव। बन के मितवा सबके हितवा रख मान सबो बर प्रेम जगाव।। (2) घर मा रहिके सब काम करौ झन फोकट के अब बैठ पहाव। बिहना उठ के नित दौड़ लगा सब आलस छोड़ नदी म नहाव। कर सूर्य प्रणाम लगा दँड बैठक ध्यान करौ सब रोग भगाव। बनही सबके बिगड़ी मनखे मन के अब आवव भाग जगाव।। (3) पढ़लौ लिखलौ जिनगी गढ़लौ रख मान सबो झन नाम कमाव। सब काम बुता बर हाथ बँटावव देश विदेश ग धाक जमाव। रख लौ कुल इज्जत मान सदा रइही सुख मा परिवार चलाव। चलही जिनगी बनही बिगड़ी मिल काम करौ सब भाग जगाव ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati ( छत्तीसगढ़ी भाषा में)

मनहरण घनाक्षरी

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मनहरण घनाक्षरी 8 8 8 7 वर्ण (1) घर चल झट पट चल घर , फट फट मत कर रट पट रट पट , दाई तोर आत हे । मट मट मट मट , टूरा करे खट पट चट चट चट चट , मार रोज खात हे।। काम बुता करे नहीं, लइका ला धरे नहीं, नशा पान रोज करै , घूम घूम खात हे। संगी साथी छूट गेहे, मया नाता टूट गेहे, रात दिन ताश खेले, जुँवा ठौर जात हे।। ******************************** (2) कोरोना जब ले आहे कोरोना, सब ला होगे गा रोना, देश परदेश अब,  सबो जग छाय हे। करे कोई करनी ला, भरे कोई भरनी ला, आनी बानी साग खाये ,  बीमारी हा आय हे। बगरे हे सबो कोती, जावौ झन एती वोती, बीमारी के इलाज ला, अभी नइ पाय हे। भागही कोरोना जब, नइ परै रोना तब, गारी देवै सबोझन,  कोन बैरी लाय हे।। *********** (3)  बरसात गड़ गड़ गरजत, झम झम बरसत, बिजली हा चमकत, बरसात आत हे। करा पानी रोज गिरै, नोनी बाबू सबो बीनै, पच पच कूदै टूरा , चिखला मतात हे। गाँव गली खेत खार, पानी चलै धारे धार, गर गर गर गर , रेला हा बोहात हे। नदी नाला भरे हावै , देखे बर सबो जावै, टर टर टर टर , मेचका टर्रात हे ।। ************** (4)  मजदूर सुत उठ काम

मेरी माँ

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मेरी माँ मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती। जब भी माँगू दो रोटी तो, चार हमेशा लाती।। भूख नहीं लगता है फिर भी,  मुझको वह खिलाती। जाता हूँ जब घर से बाहर,  पानी जरुर पिलाती।। सबको खाना देकर ही वह, अंतिम में ही खाती। मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।। किसी काम से जाता हूँ तो, मुँह मीठा कर जाती। नजर लगे न मेरे लाल को, टीका जरुर लगाती।। नींद कहीं जब न आये तो, लोरी रोज सुनाती। थपकी देकर हाथों अपनी, गोदी मुझे  सुलाती।। शिकन देखकर माथे की वह , लकीरों को पढ़ जाती। मेरी माँ है बिल्कुल अनपढ़, गिनती भी नहीं आती।। महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 

अकती तिहार

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अकती तिहार ( चौपाई छंद में) बाजा बाजे मड़वा छागे , पुतरा पुतरी अकती आ गे। नोनी बाबू नाचन लागे , सबझन के अब भाग ह जागे। कोनों डारा पाना लावै , कोनों मड़वा छावन लागै। बाजे अब्बड़ गड़वा बाजा , सजगे हावय दुल्हा राजा। सकलाये हे सबझन पारा , नेउता हवय झारा झारा। टूरा मन सब बनय बराती , टूरी मन हा हवय घराती।। रंग रंग के गाना गावय , हरदी तेल ल अबड़ चढ़ावय। दुल्हा दुल्ही भाँवर पारै , पारा भर टीकावन डारै।। हँसी ठिठोली अब्बड़ होवय , बीदा देवय दाई रोवय। पुतरी पुतरा होय बिदाई , आहू सबझन दाई माई।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @