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स्वामी विवेकानंद

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स्वामी विवेकानंद जिसने भारत की माटी को, माथे तिलक लगाया है। और यहाँ के संदेशों को, जन जन तक पहुँचाया है।। घूम फिर विदेशों में भी , जिसने अलख जगाया है। संस्कृति का संरक्षक बन, विवेकानंद कहलाया है।। युवाओं को आगे बढ़ने,  जिसने राह दिखाया है। नमन करें इस दिव्य पुरुष को, जीना हमें सिखाया है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

बिन मौसम बरसात

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बिन मौसम बरसात बिन मौसम अब बरसा होवय, गिरय झमाझम पानी ।  धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। खेत खार मा करपा माढय , होवत हे नुकसानी । कइसे लानय अब किसान हा, बुड़गे सब्बो पानी ।। माथा धरके बइठे हावय, रोवय सबो परानी । धान पान हा कइसे बाँचय, होय करेजा चानी ।। करजा बोड़ी अब्बड़ हावय , छूट कहाँ अब पाबो। धान पान हा होवय नइहे, काला अब हम खाबो ।। खरचा चलही कइसे संगी , कइसे के जिनगानी । धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। बिन मौसम अब बरसा होवय, गिरय झमाझम पानी । धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

जाड़ ह जनावत हे

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जाड़ ह जनावत हे चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। हसिया धर के सुधा दीदी ,खेत डहर जावत हे। धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे।। लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे। गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे।। धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे। मुँहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे।। अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। खेरेर-खेरेर लइका खाँसत,नाक ह बोहावत हे। डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे।। आनी-बानी के गोली-पानी, टानिक ल पियावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे। बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे।। जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। रांधत - रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे। लइका ल नउहा हे त ,कुड़क

जाड़ा

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जाड़ा जाड़ा अब्बड़ बाढ़ गे,  नइ होवत कुछु काम। दिन जल्दी बित जात हे, होवत झटकुन शाम ।। लकर धकर सब जाग के , बिहना काम म जाय । सेटर शाल ल ओढ़ के , जाड़ा रोज भगाय ।। रोवत लइका जाड़ मा , नाक घलो बोहाय। छेना लकड़ी बार के , लइका ला सेंकाय ।। पोंगा लानय काट के , दाई बरी बनाय । बादर हावय दोखहा , घेरी बेरी छाय ।। भाजी पाला जाड़ मा , अब्बड़ रोज मिठाय । राँधय भूँज बघार के , चाँट चाँट सब खाय ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" Priya Dewangan "Priyu"

चुनाव

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चुनाव आ गे हवय चुनाव,  सोच के वोट ल देहू । देही लालच रोज,  कभू झन पइसा लेहू ।। कहना माटी मान , वोट के कीमत जानव । करय सबो के काम , उही ला नेता मानव ।। पाँच साल मा आत हे , नेता मन हा गाँव जी । जीतथे जब चुनाव ला , खाथे अब्बड़ भाव जी ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"

आभार सवैया

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आभार सवैया गुरु वंदना पावैं पखारौं गुरू आज तोरे बुरा आदमी ला भला तैं बनायेस। अज्ञान के राह मा रोज जावौं धरे हाथ मोरे लिखे ला सिखायेस। दोहा सवैया सबो छंद जानेंव का होय रोला ह तेला बतायेस। कैसे चुकावौं गुरू तोर कर्जा महा मूर्ख चोला ल ज्ञानी बनायेस।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़ी भाषा में) विधान  --- 8 तगन 221 × 8

मंदार माला सवैया

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मंदार माला सवैया कन्हैया बंशी बजाके सुनाये कन्हैया नदी के किनारे नचाये सबो । गैया चराये सखा संग जाये धरे गेंद छोटे ल खेले सबो । राधा ह आये मने मा हँसे पाँव पैरी बजाये त देखे सबो । नाचे कन्हैया रचाये ग लीला मजा लेय ताली बजाये सबो । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ विधान --- 7 तगन + गुरु 221 × 7 + 2