छ ग के वीर सपूत
छ ग के वीर सपूत (आल्हा छंद) रामराय के घर मा आइस , भारत माता के गा लाल। ढोल नँगाड़ा ताँसा बाजे , अँगरेजन के बनगे काल।। लइका मन सँग खेलय कूदे , कभु नइ माने वोहर हार। भाला बरछी तीर चलावै , कोनों नइ पावय गा पार।। जंगल झाड़ी पर्वत घाटी , घोड़ा चढ़ के वोहर जाय। अचुक निशाना वोकर राहय , बैरी मन ला मार गिराय।। नारायण सिंह नाम सुन के , अँगरेजन मन बड़ थर्राय। पोटा काँपय गोरा मन के , जंगल झाड़ी भाग लुकाय।। जब जब अत्याचार बढ़य जी , निकल जाय ले के तलवार । गाजर मूली जइसे काटे , मच जाये गा हाहाकार ।। खटखट खट तलवार चलाये , सर सर सर सर तीर कमान । लाश उपर गा लाश गिराये , बैरी के नइ बाँचे जान ।। सन छप्पन अकाल परीस तब , जनता बर माँगीस अनाज । जमाखोर माखन बैपारी , नइ राखिस गा वोकर लाज ।। आगी कस बरगे नारायण , लूट डरिस जम्मो गोदाम । सब जनता मा बाँटिस वोहर , कर दिस ओकर काम तमाम।। चालाकी ले अँगरेजन मन , नारायण ला डारिस जेल। देश द्रोह आरोप लगा के , खेलिस हावय घातक खेल।। दस दिसम्बर संतावन मा , बीच रायपुर चौंरा तीर। हाँसत हाँसत फँदा चूम के , झुलगे फाँसी माटी वीर ।। छंदकार महेन्द्