कुण्डलियाँ (1) गरमी बाढ़त रोज के, कइसे रात पहाय । पंखा कूलर के बिना, नींद घलव नइ आय ।। नींद घलव नइ आय , खून ला मच्छर पीये , हावय सब हलकान , आदमी कइसे जीये । पेड़ काट के आज , करे मनखे बेशरमी , मानत नइहे बात , बढ़त जी हावय गरमी । (2) काटव झन अब पेड़ ला , जुर मिल सबे लगाव । मिलही सुघ्घर छाँव जी , परियावरन बचाव ।। परियावरन बचाव , तभे गा गिरही पानी, का सोंचत हव आज , करव झन आना कानी । सुन *माटी* के बात , आदमी ला झन बाँटव , मिलही रस फर फूल , पेड़ कोनों झन काटव । (3) छोड़व मन के भेद ला , सबला अपने मान । बेटी बेटा एक हे , कुल के दीपक जान ।। कुल के दीपक जान , नाम ला रौशन करही , देही तोला संग , तोर घर धन ला भरही । सुन माटी के बात , अपन मुँह ला झन मोड़व , बेटी घर के शान , कभू झन एला छोड़व ।। (4) उठ के बिहना रोज के, जंगल झाड़ी जाय । टपके हावय पेड़ ले , मउहा बिन के लाय ।। मउहा बिन के लाय, धरे हे ओली ओली, सँग मा तेंदू चार , रखे हे झोली झोली । सीधा सादा लोग, कभू नइ खाय लूट के, हाँसत गावत रोज, जाय जी बिहना उठ के । (5) भारत माँ के माथ ला , ऊँचा करबो आज । चाहे कुछ हो