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किसानी के दिन

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किसानी के दिन आ गे दिन किसानी के अब , नाँगर धरे किसान । खातू कचरा डारत हावय , मिल के दूनों मितान । गाड़ा कोप्पर टूटहा परे , वोला अब सिरजावे । खूंटा पटनी छोल छाल के, कोल्लर ला लगावे । एसो असकूड़ टूटे हावय , नावा ले के लाये । ढील्ला हावय चक्का दूनों, बाट ला चढ़ाये । पैरा भूसा बाहिर हावय , कोठार मा रखवावय । ओदर गेहे बियारा भाँड़ी , माटी मा छबनावय । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati Pandaria

हाथी

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हाथी (उल्लाला छन्द ) हाथी आइस झूम के, जंगल पूरा घूम के । लम्बा ओकर सूँड़ हे , बड़े जान जी मूड़ हे । सूपा जइसे कान हे  , खाथे अब्बड़ पान हे । पानी पीये सूँड़ मा , तिलक लगाये मूड़ मा । हाथी आये गाँव मा , लइका देखे छाँव मा । देथे सबझन दान जी, करथे ओकर मान जी । लइका मन चिल्लात हे , बाजा घलो बजात हे । पीछू पीछू जात हे , नरियर भेला खात हे । महेन्द्र देवांगन माटी     पंडरिया Mahendra Dewangan Mati @

माटी के दोहे

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माटी के दोहे झन कर तै अभिमान जी, काम तोर नइ आय । धन दौलत के पोटली ,  संग कभू  नइ जाय ।। धन के पाछू भाग झन , माया मोह ल छोड़ । भज ले सीता राम ला , प्रभु से नाता जोड़ ।। का राखे हे देंह मा , काम तोर नइ आय । माटी के काया हरे, माटी मा मिल जाय ।। माटी के ये देंह ला , करय जतन तैं लाख । उड़ा जही जब जीव हा,  हो जाही सब राख ।। पानी के हे फोटका , ये तन ला तैं जान । जप ले हरि के नाम ला , माटी कहना मान ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati Pandaria @

कुण्डलियाँ छन्द - 2

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कुण्डलियाँ छन्द --- 2 (1) धर के नाँगर खेत मा, जावत हवय किसान । माटी चिखला गोड़ मा , ओकर हे पहिचान ।। ओकर हे पहिचान , खेत मा अन्न उगाथे, सेवा करथे रोज,  तभे सब भोजन पाथे । खातू माटी धान,  सबो ला टुकना भर के, जावय खेत किसान,  खाँध मा नाँगर धर के । (2) पढ़ना लिखना छोड़ के, घूमत हे दिन रात । मोबाइल धर हाथ मा , करथे दिन भर बात ।। करथे दिन भर बात,  कहाँ के चक्कर लग गे , खाना पीना छोड़,  टुरी के पाछू पर गे । समझावय माँ बाप , करम ला तैंहा गढ़ना बिगड़य टूरा आज,  छूट गे लिखना पढ़ना । (3) गिल्ली डंडा छूट गे , आ गे अब किरकेट । भौंरा बाँटी के जगा , लेवत हावय बेट ।। लेवत हावय बेट , पुराना खेल नँदागे, बिल्लस फुगड़ी रेल , कहाँ अब सबो भगागे । खेलव देशी खेल,  जगत मा गाड़व झंडा, होवय जग मा नाम, भूल झन गिल्ली डंडा । (4) रोवय दाई आज जी , दुख ला कहाँ बताय । बेटा हावय चार झन , एको झन नइ भाय ।। एको झन नइ भाय ,  बहू मन गारी देवय , ताना मारय रोज,  खाय के पइसा लेवय । छाती फटगे मोर , करम मा कइसे होवय , देख विधाता आज,  कलप के दाई रोवय ।। (5) गइया राखव पाल के, आथे अब्बड़ काम । सब देव

कुण्डलियाँ छन्द -- 1

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कुण्डलियाँ (1) गरमी बाढ़त रोज के, कइसे रात पहाय । पंखा कूलर के बिना,  नींद घलव नइ आय ।। नींद घलव नइ आय , खून ला मच्छर पीये ,  हावय सब हलकान , आदमी कइसे जीये । पेड़ काट के आज , करे मनखे बेशरमी , मानत नइहे बात  , बढ़त जी हावय गरमी । (2) काटव झन अब पेड़ ला , जुर मिल सबे लगाव । मिलही सुघ्घर छाँव जी  , परियावरन बचाव ।। परियावरन बचाव , तभे गा गिरही पानी, का सोंचत हव आज  , करव झन आना कानी । सुन *माटी* के बात , आदमी ला झन बाँटव , मिलही रस फर फूल  , पेड़ कोनों झन काटव । (3) छोड़व मन के भेद ला , सबला अपने मान । बेटी बेटा एक हे , कुल के दीपक जान ।। कुल के दीपक जान , नाम ला रौशन करही , देही तोला संग  , तोर घर धन ला भरही । सुन माटी के बात , अपन मुँह ला झन मोड़व , बेटी घर के शान  , कभू झन एला छोड़व ।। (4) उठ के बिहना रोज के, जंगल झाड़ी जाय । टपके हावय पेड़ ले , मउहा बिन के  लाय ।। मउहा बिन के लाय, धरे हे ओली ओली, सँग मा तेंदू चार ,  रखे हे झोली झोली । सीधा सादा लोग,  कभू नइ खाय लूट के, हाँसत गावत रोज,  जाय जी बिहना उठ के । (5) भारत माँ के माथ ला , ऊँचा करबो आज । चाहे कुछ हो

स्वच्छता अभियान

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स्वच्छता अभियान स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छ भारत अभियान । गली मोहल्ला  साफ रखो , और स्वच्छता अपनाओ । घर हो चाहे बाहर हो , कचरा मत फैलाओ । दुश्मन को दोस्त बनाओ , स्वच्छता अपनाओ । अपने मन को स्वच्छ रखो और अच्छी सोच अपनाओ। वातावरण को स्वच्छ रखने से , तन मन शुद्ध हो जायेगा। हर तरफ खुशहाली होगी , बीमारी दूर हो जायेगा। पर्यावरण को बचाना है , भारत को स्वच्छ बनाना है । स्वच्छ रखने से हर घर में , रोज खुशियाँ आयेगी । छू न सकेगी बीमारी , झट से दूर हो जायेगी। बीमारी को भगाना है स्वच्छता अपनाना है। स्वच्छ भारत अभियान चलाओ , जीवन में खुशियाँ फैलाओ । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़

खटिया

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खटिया खटिया के गय जमाना, अब तो पलंग आ गे । पटवा डोरी अऊ बूच के, जमाना हा नँदागे । खटिया  में बइठे बबा , ढेंरा ला आँटे । सुख दुख के गोठ ला , सबो झन कर बाँटे । सगा पहुना सबोझन, खटिया मा बइठे । बड़ मजबूत हाबे कहिके, मुछा ला अइठे । अब तो नवा नवा , पलंग अउ दीवान आ गे । मचोली अउ खटिया के, जमाना हा नँदागे । नींद भर बबा हा,  खोड़रा खटिया मा सोवय । फसर फसर नाक बाजे, कतको हल्ला गुल्ला होवय। अब तो पलंग मा सुतथे तभो , नींद नइ आवय । सुपेती हा गरमथे अउ , एती वोती कस मसावय। नेवार के तक गय जमाना, अब तो दीवान  आ गे । पटवा डोरी अउ बूच के, जमाना हा नँदागे । खटिया के गय जमाना, अब तो पलंग आ गे । पटवा डोरी अउ बूच के, जमाना हा नँदागे । महेन्द्र देवांगन माटी       पंडरिया  (कबीरधाम ) Mahendra Dewangan Mati @ 01/06/18