छत्तीसगढ़ के खजुराहो - भोरमदेव

छत्तीसगढ़ के खजुराहो -भोरमदेव 
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छत्तीसगढ़ में घुमे फिरे के बहुत अकन जगा हाबे । जंगल, परवत, झरना, घाटी,ऐतिहासिक जगा, मंदिर आदि मन ह बहुतेच सुंदर अऊ मनमोहक हे।
इंहा के प्राकृतिक सुंदरता ह देखे के लायक हे।एकरे पाय बहुत झन बिदेशी मनखे मन ह छत्तीसगढ़ में घूमे ल आथे अऊ बहुत तारिफ भी करथे ।
अइसने एक जगा हे कवर्धा जिला में, कवर्धा से  18कि मी दूर भोरमदेव मंदिर ।ए मंदिर ह एक हजार साल पुराना हे अऊ इंहा के सुन्दरता ह देखे के लायक हे।
ए मंदिर के चारो डाहर घनघोर जंगल अऊ बड़े जान पहाड़ हाबे ।एकरे बीच में भोरमदेव के मंदिर हे जेमे शिव जी विराजमान हे।

बनावट -भोरमदेव मंदिर ह छत्तीसगढ़ में ही नही बल्कि पूरा दुनिया के नकशा में परसिद्ध होंगे हे।
मंदिर के चारो डाहर बहुत बड़े विशाल मैकल पर्वत समूह हे।एकर चारों तरफ बड़े बड़े घाटी अऊ घनघोर जंगल हाबे।
मंदिर के आघू में एक ठन बहुत बड़े तरिया हे।तरिया के पानी बहुत साफ अऊ मीठा हे।ए तरिया ह बहुत गहरा हे।आजकाल एमे बोट चलथे ।परयटक मन ह मनोरंजन खातिर नाव में चढ़थे अऊ नौका विहार के आनंद लेथे ।तरिया में कमल के फूल भी खिले रहिथे, जेहा तरिया के सुन्दरता ल बढ़ा देथे ।
मंदिर के बनावट ह खजुराहो के मंदिर जइसे हे।जेकर सेती एला छत्तीसगढ़ के खजुराहो भी कहे जाथे ।
ए मंदिर ह एक ऐतिहासिक मंदिर हरे।
ए मंदिर ल 11वी शताब्दी में नागवंशी राजा देवराय ह बनवाये रिहिसे ।ए मंदिर के सुन्दरता देखे के लायक हे।
अइसे कहे जाथे कि गोड़ राजा मन के देवता भोरमदेव रिहिसे ।भोरमदेव ह शिव जी के ही नाम हरे।एकरे पाय ऐला भोरमदेव के नाम से जाने जाथे ।

सब धर्म ल महत्व -नागवंशी राजा के शासन काल में सब धर्म ल एक समान महत्व देवत रिहिसे ।कोनों धर्म से भेदभाव नइ करत रिहिसे ।एकर साक्षात उदाहरण हे भोरमदेव के  मंदिर ।इंहा शैव, वैष्णव, बौद्ध अऊ जैन मन के मूरति देखे ल मिलथे ।

समय काल- भोरमदेव मंदिर बहुत पुराना मंदिर हरे।मंदिर के मंडप में रखे एक शिलालेख से जानकारी मिलथे कि मूरति के निर्माण के समय कल्चुरी संवत 8.40 हरे ।
ए मंदिर के निरमाण छठवे फणी नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में होय रिहिसे ।कल्चुरी संवत 8.40 के अर्थ 10वीं शताब्दी के समय होथे अइसे कहे जाथे ।

कला शैली -भोरमदेव मंदिर ह परयटक मन ल बहुत भाथे।ए मंदिर में शोध करे बर दूर -दूर से शोधार्थी मन ह आथे ।काबर ए मंदिर के कलाकृति अऊ कलाशैली ह विशेष रूप से बने हे।मंदिर के मुहूं ह उत्ती  ( पूर्व )दिशा डाहर हे।ए मंदिर ह नागर शैली के एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करथे ।मंदिर में जाय बर तीन डाहर ले दरवाजा बने हे।कोनों भी तरफ से जा सकत हस।ए मंदिर ह जमीन से 5फूट ऊंचा चबुतरा में बनाये गेहे।मंदिर में जाय बर तीनों दरवाजा से सीढ़ी ऊपर जाय ल परथे अऊ शिव जी के दरशन करे बर गर्भ गृह में फेर नीचे उतरे बर परथे ।गर्भ गृह में बहुत अकन भगवान के मूरति रखाय हाबे ।एकर बीच में काला पत्थर से बने हुए शिव लिंग रखाय हे,उही ल भोरमदेव कहिथे ।

मंडप के संरचना -मंदिर जाय बर चबुतरा में चढ़बे त मंडप बने हे ।मंडप के लंम्बाई ह 60 फूट अऊ चौड़ाई ह 40फूट हे।मंडप के बीच में 4 ठन मोटा -मोटा खंभा खड़े हे।अऊ तीरे तीर किनारे में 12खंभा खड़े हे।जेहा मंडप के छत ल सम्हाले हे।सब खंभा में एक से बढके एक सुंदर कलाकृति हे।खंभा मन मे शिव लीला,बिष्णु भगवान, देवी देवता के बहुत से चित्र ,नायक नायिका, नर्तकी ,स्त्री पुरुष आदि के बहुत से चित्र उकेरे गेहे।बहुत अकन पश्चिमी चित्र भी  देखे ल मिलथे ।
एकर से ए कहे जा सकथे कि वो जमाना में भी आदमी मन नाच गाना ल पसंद करे अऊ पशु पक्षी मन से भी प्रेम करे।गर्भ गृह में जाबे त एक पंचमुखी नाग के  मूरति अऊ गणेश जी के मूरति स्थापित हे।मंदिर के ऊपरी भाग के शिखर नइहे।
ए परकार से भोरमदेव के मंदिर ह बहुत सुंदर ढंग से बने हे।अऊ परयटक मन के मन ल मोह लेथे।

मड़वा महल -भोरमदेव मंदिर से एक कि मी धुरिहा में एक  ठन अऊ शिव मंदिर हे।जेला मड़वा महल या दूल्हादेव मंदिर कहे जाथे ।ए मंदिर ल राजा रामचंद्र देव ह 1339ईसवी में बनवाय रिहिसे ।मड़वा के अर्थ होथे मंडप ।जेला बिहाव के समय बनवाय जाथे।राजा के बिहाव ह इही मंदिर में होय रिहिसे अऊ ओकर मड़वा ह इहींचे गड़े रिहिसे एकरे पाय स्थानीयआदमी मन एला मड़वा महल या दूल्हादेव मंदिर कहिथे ।ए मंदिर के बाहरी दीवार में 54 ठन मिथुन मूर्ति काम कला के रूप दरशाय गेहे।जेहा आंतरिक परेम अऊ सुंदरता ल प्रदर्शित करथे ।एकर माध्यम से समाज में स्थापित गृहस्थ जीवन के अंतरगता ल देखाय के प्रयास करे गेहे।

छेरकी महल -भोरमदेव मंदिर के दक्षिण -पश्चिम दिशा में एक कि.मी.के धुरिहा में एक ठन अऊ शिव मंदिर हे जेला छेरकी महल कहे जाथे ।
कहे जाथे कि ए मंदिर ल राजा ह छेरी (बकरी )
चरइया मन बर बनवाय रिहिसे ।बकरी ल स्थानीय बोली मे छेरी कहे जाथे एकरे पाय ए मंदिर के नाम ह छेरकी महल परगे ।ए मंदिर के तीर मे जाय से इंहा के माटी में छेरी के गंध आथे ।ए मंदिर के द्वार ल छोड़ के बाहरी दीवार ह अलंकार विहिन हे।

पुरातत्व विभाग ह ए मंदिर ल भी अपन संरक्षण में रखे हुए हे।
ए परकार से हम कह सकथन के भोरमदेव ह छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण परयटन स्थल हरे।इंहा के जनजातीय संस्कृति, स्थापत्य कला,प्राकृतिक सुंदरता सब ह देशी -विदेशी परयटक मन के मन ल मोह लेथे।
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लेखक 
महेन्द्र देवांगन "माटी"

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