जाड़ बाढ़त हे

जाड़ बाढ़त हे
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सुर सुर सुर सुर हवा चलत हे,
जाड़ अब्बड़ बाढ़हत हे
बिहनिया के होते साठ
डोकरी ह आगी  बारत हे।

जुड़ पानी ल छुये नइ सकस,
तात पानी ल मढहावत हे,
लोग लइका के नाक बोहावत,
डोकरा ह खिसियावत हे।

खोरोर खोरोर खांसत डोकरी,
डोकरा ह बगियावत हे,
काम बुता जादा झन करे कर डोकरी,
डोकरा ह समझावत हे।

चुल्हा तीर मे बइठ के डोकरा,
बिड़ी ल सुलगावत हे,
सेटर साल ल ओढ के डोकरी,
आगी ल सिपचावत हे।

गरम पानी में नहावत डोकरा
जाड़ ह अब्बड़ लागत हे
घाम तीरन बइठ के डोकरी,
दार भात साग खावत हे।
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रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम  ( छ ग )
Email -- priyadewangan1997@gmail.com

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