रोटियां
रोटियां
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गोल गोल जब घर में, बनती हैं रोटियां
खाकर मन तृप्त हो जाती है रोटियां।
आते ही घर में, पानी देती है बेटियाँ
गरम गरम तुरंत, खिलाती हैं रोटियां ।
चंदा सा गोल , जब बनती हैं रोटियां
नया नया सपना, दिखाती हैं रोटियां ।
मेहनत कर कमाई से,जब खाते हैं रोटियां
दिल में सुकून और शांति, दे जाती हैं रोटियां ।
मां अपनी हाथों से,जब बनाती हैं रोटियां
दो कौर और ज्यादा, खिलाती हैं रोटियां ।
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रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम ( छ ग )
Email -- priyadewangan1997@gmail.com
Nice poem
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