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बगिया

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  "बगिया" फूल खिले हैं सुंदर सुंदर, सबके मन को भाये। मनभावन यह उपवन देखो, तितली दौड़ी आये।। सुबह सुबह जब चली हवाएँ,  खुशबू से भर जाये। रस लेने को पागल भौंरा, फूलों पर मँडराये।। सुंदर सुंदर फूल देखकर,  प्रेमी जोड़े आते। बैठ पास में बालों उनकी, फूल गुलाब लगाते।। बातें करते मीठे मीठे, दोनों ही खो जाते। पता नहीं कब समय गुजरते, साँझ ढले घर आते।। सभी लगाओ पौधे प्यारे, सुंदर फूल खिलाओ। महक उठे यह धरती सारी, खुशियाँ सभी मनाओ।। रचनाकार  महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

कातिक पुन्नी

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  *कातिक पुन्नी* कातिक महिना पुन्नी मेला, जम्मो जगा भरावत हे। हाँसत कूदत लइका लोगन, मिलके सबझन जावत हे।। बड़े बिहनिया ले सुत उठ के, नदियाँ सबो नहावत हे। हर हर गंगे पानी देवत, दीया सबो जलावत हे।। महादेव के पूजा करके,  जयकारा ल लगावत हे। गीत भजन अउ रामायण के,  धुन हा अबड़ सुहावत हे।। दरशन करके महादेव के, माटी तिलक लगावत हे। बेल पान अउ नरियर भेला, श्रद्धा फूल चढ़ावत हे।। मनोकामना पूरा होही , जेहा दरशन पावत हे । कर ले सेवा साधु संत के, बइठे धुनी रमावत हे।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

सरस्वती वंदना

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  "सरस्वती वंदना"  (गीतिका छंद)  ज्ञान के भंडार भर दे , शारदे माँ आज तैं । हाथ जोंड़व पाँव परके , राख मइयाँ लाज तैं ।। कंठ बइठो मातु मोरे , गीत गाँवव राग मा । होय किरपा तोर माता,  मोर सुघ्घर भाग मा ।। तोर किरपा होय जे पर , भाग वोकर जाग थे । बाढ़ थे बल बुद्धि वोकर , गोठ बढ़िया लाग थे ।। बोल लेथे कोंदा मन हा , अंधरा सब देख थे । तोर किरपा होय माता  , पाँव बिन सब रेंग थे ।। रचनाकार महेंद्र देवांगन *माटी* पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

मुनिया रानी

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  "मुनिया रानी"  (बालगीत ) ( चौपाई छंद ) भोली भाली मुनिया रानी । पीती थी वह दिनभर पानी ।। दादा के सिर पर चढ़ जाती। बड़े मजे से गाना गाती ।। दादा दादी ताऊ भैया । नाच नचाती ताता थैया।। खेल खिलौने रोज मँगाती। हाथों अपने रंग लगाती।। भैया से वह झगड़ा करती। पर बिल्ली से ज्यादा डरती।। नकल सभी का अच्छा करती। नल में जाकर पानी भरती।। दादी की वह प्यारी बेटी । साथ उसी के रहती लेटी।। कथा कहानी रोज सुनाती। तभी नींद में वह सो जाती।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

वंदना

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  "वंदना"  (दोहा) करूं वंदना नित्य ही, हे गणनायक राज। संकट सबके टाल दो, सिद्ध होय सब काज।। काम मिले हर हाथ को, नहीं पलायन होय। भूखा कोई मत रहे, बच्चे कहीं न रोय।। कोरोना संकट हटे, बीमारी हो दूर। स्वस्थ रहे सब आदमी,  नहीं रहे मजबूर ।। भेदभाव को छोड़ कर,  रहे सभी अब साथ। नवयुग का निर्माण हों, हाथों में दें हाथ ।। करुं आरती रोज ही, आकर तेरे द्वार । करो कृपा गणराज जी,  वंदन बारंबार ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

गोबर बिने बर जाबो

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  "गोबर बिने बर जाबो" (सार छंद) चलो बिने बर जाबो गोबर, झँउहा झँउहा लाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सुत उठ के बड़े बिहनिया ले, बरदी डाहर जाबो। पाछू पाछू जाबो तब तो , गोबर ला हम पाबो ।। गली गली में घूम घूम के,  गोबर रोज उठाबो । बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। दू रुपिया के भाव बेचबो , कारड मा लिखवाबो। कुंटल कुंटल बेच बेच के, हफ्ता पइसा पाबो ।। छोड़ सबो अब काम धाम ला, गोबर के गुण गाबो। बेचबोन हम वोला संगी, अब्बड़ पइसा पाबो।। सेवा करबो गौ माता के,  तब तो गोबर देही। सुक्खा कांच्चा सब गोबर ला, शासन हा अब लेही।। रचनाकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"  (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया कबीरधाम  छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

उगता सूरज ढलता सूरज

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  "उगता सूरज ढलता सूरज"  ( सार छंद)  उगता सूरज बोल रहा है,  जागो मेरे प्यारे । आलस छोड़ो आँखे खोलो, दुनिया कितने न्यारे ।। कार्य करो तुम नेक हमेशा, कभी नहीं दुख देना। सबको अपना ही मानो अब, रिश्वत कभी न लेना।। ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई। करता है जो काम गलत तो,  शामत उसकी आई।। कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ। होगा नया सवेरा फिर से,  गीत खुशी के गाओ ।। उगता सूरज ढलता सूरज,  बतलाती है नानी ।। ऊँच नीच जीवन में आता, सबकी यही कहानी ।। रचनाकार -  महेन्द्र देवांगन "माटी" (प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू") पंडरिया  छत्तीसगढ़