(1) आजकाल के लइका मन हा , मानय नहीं बात । घूम घूम के खावत रहिथे , मेछा ल अटियात ।। धरे हाथ मा मोबाइल ला , चलावत हे नेट । कोनों चिल्लावय बाहिर ले , खोलय नहीं गेट ।। ************************************ (2) तीपे हावय भुइयाँ अब्बड़ , जरय चटचट पाँव । सुरताये बर खोजे सबझन , दिखत नइहे छाँव ।। एसो गरमी बाढ़े हावय , चलत अब्बड़ झाँझ । निकलत नइहे घर ले कोनों , सबो घूमय साँझ ।। ************************************ (3) पेड़ सबो कट गेहे संगी , मिलत नइहे छाँव । भटकत हावय जीव जंतु सब , कहाँ मिलही ठाँव ।। नवतप्पा के गरमी भारी , जरत हावय पाँव । मुश्किल होगे निकले बर जी , गाँव कइसे जाँव ।। ***************************************** (4) तोर शरण मा आवँव मइया , मोर रखले लाज । गलती झन होवय काँही वो ,बनय बिगड़े काज ।। सुमिरन करके तोरे माता , लिखँव मँय मतिमंद । कंठ बिराजो शारद मइया , रोज गावँव छंद । ***************************************** (5) गरजत हावय बादर संगी , घटा हे घनघोर । रहि रहि अब्बड़ बिजुरी चमके , ह्दय काँपे मोर ।। रापा कुदरी सकला करके , चलव खेती खार । आय किसानी के दिन