पानी बरसा दे



पानी बरसा दे

तोर अगोरा हावय बादर , सबझन देखत रस्ता ।
कब आबे अब तिही बता दे , हालत होगे खस्ता ।।

धान पान सब बोंयें हावय , खेत म नइहे पानी ।
कोठी डोली सुन्ना परगे , चलय कहाँ जिनगानी ।।

बादर आथे उमड़ घुमड़ के , फेर कहाँ चल देथे ।
आस जगाथे मन के भीतर,  जिवरा ला ले लेथे ।।

माथा धर के सबझन रोवय , कइसे करे किसानी ।
सुक्खा हावय खेत खार हा , नइहे धान निशानी ।।

किरपा करहू इन्द्र देव जी  , जादा झन तरसावव ।
विनती हावय हाथ जोड़ के , पानी ला बरसावव ।।

सौंधी सौंधी खुशबू हा जब , ये माटी ले आही ।
माटी के खुशबू ला पा के , माटी खुश हो जाही ।।

रचनाकार
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया कबीरधाम
     छत्तीसगढ़
8602407353

Mahendra Dewangan Mati

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