बारी के फूट
बारी के फूट *************** वाह रे बारी के फूट , फरे हस तैं चारों खूँट । बजार में आते साठ , लेथय आदमी लूट । दिखथे सुघ्घर गोल गोल, अब्बड़ येहा मिठाय । छोटे बड़े जम्मो मनखे , बड़ सऊंख से खाय । जेहा येला नइ खाय , अब्बड़ ओहा पछताय । मीठ मीठ लागथे सुघ्घर, खानेच खान भाय । बखरी मा फरे हावय , पाना मा लुकाय । कलेचुप बेंदरा आके, कूद कूद के खाय । नान नान लइका मन , चोराय बर जाय । कका ह लऊठी धर के, मारे बर कुदाय । कूदत फांदत भागे टूरा , नइ पावय पार । डोकरी ह चिल्लात हावय , मुँहू ल तोर टार । अब्बड़ फरे हे बारी मा , नइ बोलंव मय झूठ । सबो झन ला नेवता हावय , खाय बर आहू फूट । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ priyadewangan1997@gmail.com