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सुप्रभात

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मुंदरहा ले उठके, कूकरा ह चिल्लावत हे बिहनिया होगे कहिके, सबला बतावत हे फूल गेहे चारो कोती ,फूलवारी में फूल माटी म खुसबू ल,गाँव भर बगरावत हे । बिहनिया के जय जोहार महेन्द्र देवांगन माटी Mahendradewanganmati ♏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹👏

मदर डे

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वाह रे जमाना, कइसे "मदर डे " मनावत हे । बात ल मानत नइहे, वाटसप ल चलावत हे । दुनिया भरके ग्रुप में, बधाई सबला देवत हे । खटिया में परे हे दाई, कोनों सुध नइ लेवत हे । जानो मानों श्रवण कस, भक्ति ल देखावत हे । मांगत हाबे पानी दाई, तब अब्बड़ खिसियावत हे उपर छावा बधाई भेज के, मदर डे मनावत हे । आनी बानी के फोटो खींचके, जी ल कल्लावत हे। मां तो हरे करुणा के मूरती, दुख ओकर पहिचानव एक दिन से कुछु नइ होये, रोज मदर डे मनावव । रोज मदर डे मनावव, रोज मदर डे मनावव । महेन्द्र देवांगन माटी ♏✍ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

झांझ चलत

झांझ चलत भाई, झांझ चलत । सरी मंझनिया , झांझ चलत । एसो गरमी, बहुत परत । झांझ चलत , भाई झांझ चलत । सुक्खा गेहे , सब रुख राई । बांचे नइहे, एको पत्ता भाई । चिरई चिरगुन , पियास मरत । झांझ चलत भाई, झांझ चलत। सरी मंझनिया , झांझ चलत । महेन्द्र देवांगन माटी ✍ ☀🌟☀💥☀☄🌟☄☀

गरमी बाढ़त हे

गरमी बाढ़त हे *************** दिनों दिन गरमी बाढ़त, पसीना चुचवावत हे। कतको पानी पीबे तबले, टोंटा ह सुखावत हे। कुलर पंखा काम नइ करत, गरम हावा आवत हे। तात तात देंहे लागत, पसीना में नहावत हे । घेरी बेरी नोनी बाबू, कुलर में पानी डारत हे । चिरई चिरगुन भूख पियास में, मुँहू ल फारत हे। नल में पानी आवत नइहे, बोर मन अटावत हे। तरिया नदिया सुक्खा होगे, कुंवा मन पटावत हे। कतको जगा पानी ह, फोकट के बोहावत हे। झन करो दुरुपयोग संगी, माटी ह गोहरावत हे। *********** रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम 

गरमी की छुट्टी

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गरमी की छुट्टी *************** स्कूल की अब हो गई छुट्टी धमा चौकड़ी मचा रहे हैं । दिन भर नाचे कूदे बच्चे मम्मी पापा को सता रहे हैं । नहीं सोते दोपहर में भी टी वी मोबाइल चला रहे हैं । तेज आवाज में गाना बजाकर हो हल्ला मचा रहे हैं । आइसक्रीम वाले आते ही दौड़ के सब जा रहे हैं । रंग बिरंगे फ्लेवर लेकर बड़े मजे से खा रहे हैं । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

मनी प्लांट

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रुख राई ल काट के सब, प्रदुसन ल बढावत हे। अपन हाथ में खुद आदमी, बिमारी ल बढावत हे। बड़े बड़े पेड़ ल काट के, सोफा पलंग बनावत हे । गददा लगाके सुतत हे, तभो नींद नइ आवत हे। घर के बगल में पेड़ लगे हे, ओला वो कटावत हे। भीतरी में हरियाली आही, मनी प्लांट लगावत हे। महेन्द्र देवांगन माटी

हलाकान

हलाकान *************** गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान , चिरई चिरगुन प्यासे हे, कइसे बांचही परान। सूरज देवता के ताप में, भुंईयां ह जरत हे रुख राई के पत्ता झरगे,पऊधा मन मरत हे। छेरी पठरु भूख मरत, बांचे नइहे पान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान । रहि रहि के टोंटा ह , अब्बड़ सुखावत हे, खवात नइहे भात ह, पानी भर पीयावत हे। घेरी बेरी दाई मांगत, पानी ल लान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। तरिया नदिया के सब, पानी अटावत हे कुंवा बावली अऊ, बोरिंग पटावत हे। कोन जनी संगी , कइसे बांचही परान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। घेरी बेरी लाइन गोल, पुटठा ल धुंकत हे चटक गेहे पेट ह, कुकुर मन भुंकत हे। बबा ह चिल्लावत हे, डंडा ल लान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। महेन्द्र देवांगन माटी         पंडरिया