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मजदूर दिवस

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(मजदूर दिवस पर मोर कविता ) बिहनिया ले उठ के, रोज कमाय बर जाना हे। रापा कुदारी गैंती बसुला, इही हमर बाना हे । पानी गिरे चाहे घाम करे, हमला रोज कमाना हे। नइ जानन हम इडली डोसा, चटनी बासी खाना हे। मेहनत हमर करम संगी, मेहनत के फल पाथन। रोज कमाथन घाम पियास में, तब लइका ल खवाथन । धरती दाई के सेवा करके, अन्न हम उपजाथन। टार दे तुंहर चोचला ल, हम तो रोज मजदूर दिवस मनाथन । महेन्द्र देवांगन माटी     पंडरिया

हाइकु

हाइकु (1) पेड़ लगाओ      फल फूल भी खाओ      मौज मनाओ । (2) चलते राही      छांव मिले न कहीं      कटते पेड़ । (3) जंगल साफ     माफियाओं का राज      आते न बाज । (4)  टूटी है डाली         कैसे बचाये माली       क्यों देते गाली । (5)  जल बचाओ       गली में न बहाओ      प्यास बुझाओ । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम  (छ ग )

नाना की पिटारी में

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नाना की पिटारी में ***************** बढ़िया बढ़िया खेल खिलौने, नाना की पिटारी में । आओ झूमे नाचे गाये  , नाना की पिटारी में । छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी, नाना की पिटारी में । सैर करे हम जंगल झाड़ी , नाना की पिटारी में । शेर भालू हिरण चीता,   नाना  की  पिटारी में । खेले कूदे नाचे सीता,   नाना की पिटारी में । गीत कहानी गजल कविता, नाना की पिटारी में। पहाड़ पर्वत झरना सरिता,  नाना की पिटारी में । कोयल गाये मोर  नाचे , नाना की पिटारी में । बंदर मामा पुस्तक बांचे, नाना की पिटारी में । धूम धड़ाका करते भालू, नाना की पिटारी में । डंडा लेकर दौड़े लालू, नाना की पिटारी में । ************ प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया छत्तीसगढ़

सेल्फी

सेल्फी ************* जिधर देखो उधर, सेल्फी ले रहे हैं । ओरिजनल का जमाना गया, बनावटी मुस्कान दे रहे हैं । भीड़ में भी आदमी आज अकेला है तभी तो बनावटी मुस्कान देता है । और जहाँ भीड़ दिखे वहाँ खुद मुस्करा कर सेल्फी लेता है । भीड़ में दिख गया कोई अच्छी सी लड़की तो आदमी पास चला जाता है । चुपके से सेल्फी लेकर अपने दोस्तों को दिखाता है । दिख गया कहीं जुलूस तो लोग आगे आ जाते हैं । और एक सेल्फी लेकर पता नही कहां गायब हो जाते हैं । खाते पीते उठते बैठते लोग सेल्फी ले रहे हैं । मैं समाज के अंदर हूँ ये बतलाने फेसबुक और वाटसप पर भेज रहे हैं । सच तो ये है आदमी कितना अकेला हो गया है । एक फोटो खींचने वाला भी नहीं मिल रहा इसीलिए तो सेल्फी ले रहा है । ************** महेन्द्र देवांगन "माटी "        पंडरिया

आमा के चटनी

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आमा के चटनी **************** आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे, दू कंऊरा भात ह जादा खवाथे । कांचा कांचा आमा ल लोढहा म कुचरथे, लसुन धनिया डार के मिरचा ल बुरकथे। चटनी ल देख के लार ह चुचवाथे, आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । बोरे बासी संग में चाट चाट के खाथे, बासी ल खा के  हिरदय ह जुड़ाथे , खाथे जे बासी चटनी अब्बड़ मजा पाथे आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । बगीचा में फरे हे लट लट ले आमा , टूरा मन देखत हे धरों कामा कामा । छिप छिप के चोराय बर बगीचा में जाथे आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । दाई ह हमर संगी चटनी सुघ्घर बनाथे, ओकर हाथ के बनाय ह गजब मिठाथे । कुर संग म भात ह उत्ता धुर्रा खवाथे आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । ****************** रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम  (छ ग ) पिन - 491559 मो नं -- 8602407353

गीत -- सेवा करले

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गीत -- सेवा करले ****************** सेवा करले दाई ददा के 2, इही में सुख तैं पाबे तर जाही तोर चोला संगी,जग में नाम कमाबे --2 नौ महिना कोख में राखिस, कतका दुख ल पाइस बेटी बेटा पाये खातिर, मंदिर मस्जिद जाइस करिस तपस्या तोरे खातिर 2,छोड़ के तै झन जाबे तर जाही तोर ----------------------------------। सेवा करले दाई ददा के -----------------------। पानी पसीया अपन पीके, तोला भात खवाइस जिनगी तोर बन जाही कहिके, तोला खूब पढ़ाइस झन धोखा तै देबे वोला 2,ओकर मान बढ़ाबे तर जाही तोर ------------------------। फूल सरीख पोंसे हे तोला, पालना में झुलाके अंचरा ढांक के तोला राखिस, दुःख पीरा ल भुलाके दुख झन देबे तैंहर ओला 2,ओकर नाम बढ़ाबे तर जाही तोर -------------------------। तोरे तन ल ढांके खातिर, खुद उघरा रहि जाथे खोंड़रा खटिया में अपन सुत के, तोला गद्दा में सुताथे पाछू बर सुख मिलही कहिके 2,तोर से आसा हाबे तर जाही तोर -------------------------। कतका दुख पीरा ल सहिके,पांव में खड़ा कराइस घाम पियास ल सहिके संगी,तोरे खातिर कमाइस धरम निभाले अपन तेंहा, अब वोकर बर कमाबे तर जाही तोर ------------

छत्तीसगढ़ के खजुराहो - भोरमदेव

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छत्तीसगढ़ के खजुराहो -भोरमदेव  ***************************** छत्तीसगढ़ में घुमे फिरे के बहुत अकन जगा हाबे । जंगल, परवत, झरना, घाटी,ऐतिहासिक जगा, मंदिर आदि मन ह बहुतेच सुंदर अऊ मनमोहक हे। इंहा के प्राकृतिक सुंदरता ह देखे के लायक हे।एकरे पाय बहुत झन बिदेशी मनखे मन ह छत्तीसगढ़ में घूमे ल आथे अऊ बहुत तारिफ भी करथे । अइसने एक जगा हे कवर्धा जिला में, कवर्धा से  18कि मी दूर भोरमदेव मंदिर ।ए मंदिर ह एक हजार साल पुराना हे अऊ इंहा के सुन्दरता ह देखे के लायक हे। ए मंदिर के चारो डाहर घनघोर जंगल अऊ बड़े जान पहाड़ हाबे ।एकरे बीच में भोरमदेव के मंदिर हे जेमे शिव जी विराजमान हे। बनावट -भोरमदेव मंदिर ह छत्तीसगढ़ में ही नही बल्कि पूरा दुनिया के नकशा में परसिद्ध होंगे हे। मंदिर के चारो डाहर बहुत बड़े विशाल मैकल पर्वत समूह हे।एकर चारों तरफ बड़े बड़े घाटी अऊ घनघोर जंगल हाबे। मंदिर के आघू में एक ठन बहुत बड़े तरिया हे।तरिया के पानी बहुत साफ अऊ मीठा हे।ए तरिया ह बहुत गहरा हे।आजकाल एमे बोट चलथे ।परयटक मन ह मनोरंजन खातिर नाव में चढ़थे अऊ नौका विहार के आनंद लेथे ।तरिया में कमल के फूल भी खिले रहिथे, जेहा