आमा के चटनी

आमा के चटनी
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आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे,
दू कंऊरा भात ह जादा खवाथे ।
कांचा कांचा आमा ल लोढहा म कुचरथे,
लसुन धनिया डार के मिरचा ल बुरकथे।
चटनी ल देख के लार ह चुचवाथे,
आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे ।

बोरे बासी संग में चाट चाट के खाथे,
बासी ल खा के  हिरदय ह जुड़ाथे ,
खाथे जे बासी चटनी अब्बड़ मजा पाथे
आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे ।

बगीचा में फरे हे लट लट ले आमा ,
टूरा मन देखत हे धरों कामा कामा ।
छिप छिप के चोराय बर बगीचा में जाथे
आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे ।

दाई ह हमर संगी चटनी सुघ्घर बनाथे,
ओकर हाथ के बनाय ह गजब मिठाथे ।
कुर संग म भात ह उत्ता धुर्रा खवाथे
आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे ।
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रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी"
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला -- कबीरधाम  (छ ग )
पिन - 491559
मो नं -- 8602407353

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