पुरखा के इज्जत


पुरखा के इज्जत

जनम भर के कमाई ल , थोकिन मा उड़ावत हे ।
पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।।

मर मर के काम करके , धन ल सकेलीस ।
लोग लइका पोसीस , अउ कतका दुख ल झेलीस।।

बाढ़ गे टूरा तब , गली में मेछरावत हे ।
पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।।

गली गली मा दारु पी के , लाल आँखी देखाथे ।
दाई ददा ल कुछु नइ समझे , मारे बर कुदाथे ।।

काम बुता तो करना नइहे  , फोकट के घुमथे ।
जतका लोफ्फड़ टूरा हाबे , हटरी मा मिलथे ।।

सबोझन मिल के , रंग रेली मनावत हे ।
पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।।

मुड़ धर के बइठ गेहे , दाई ददा हा आज ।
करे बिनती भगवान से , रख ले हमर लाज ।।

चढ़ गेहे टूरा मन ल , फैशन के बीमारी ।
ओकरे पाय नइ करय , छोटे बड़े के चिन्हारी ।।

चसमा ल पहिन के , कनिहा ल मटकावत हे ।
पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।।

रचनाकार
महेन्द्र देवांगन माटी
(बोरसी  - राजिम वाले )
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan Mati

Comments

  1. बहुत सुन्दर सर जी बधाई हो

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तेरी अदाएँ

अगहन बिरसपति

वेलेंटटाइन डे के चक्कर