नमन करुं


नमन करुं
(ताटंक छंद)

मातु पिता के श्री चरणों में,  नित नित शीश झुकाता हूँ ।
और गुरू के पद रज को मैं,  अपने माथ लगाता हूँ ।।

कृपा करो हे मातु शारदा,  शरण आपकी आता हूँ ।
भूल चूक सब माफ करो माँ , तेरे ही गुण गाता हूँ ।।

नमन करुं मैं धरती अंबर , नील गगन के तारों को ।
नमन करुं मैं चंदा सूरज , उनके सब उपकारों को ।।

नमन करुं मैं ईष्ट देव को , कृपा सदा बरसाते हैं ।
नमन करुं उस सूक्ष्म जगत को , जो उजियारा लाते हैं ।।

नमन करुं उस परि परिजन को,  जो सुख दुख में आते हैं ।
नमन करुं उन मित्र सभी को, हरदम राह बताते हैं ।।

नमन करुं मैं सकल चराचर , नदियाँ पर्वत घाटी को ।
नमन करुं मैं इस धरती के,  कण कण पावन माटी को ।।

रचनाकार
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan Mati

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