मोर छत्तीसगढ़ ( गीत)
मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।
गुरतुर गुरतुर भाखा बोली , सबके मन ला भा गे ।।
मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा .......... ................
भेदभाव नइ जानय इँहा ,
सबके सेवा करथे ।
मिल बाँट के खाथे सुघ्घर ,
दुख पीरा ला हरथे ।
धरती दाई के सेवा खातिर, बिहना ले सब जागे ।
मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।
आनी बानी तीज तिहार ला ,
मिलके सबो मनाथे ।
ठेठरी खुरमी चीला सोंहारी ,
घर घर सबो बनाथे ।
गुलगुल भजिया अबड़ मिठाथे , थरकुलिया मा माँगे ।
मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।
सीधा सादा मनखे इँहा ,
गारी गल्ला नइ जानय ।
घर मा आथे कोनों सगा ,
देवता सही मानय ।
देख इँहा के रीत रिवाज ला , दुनिया भर मा छा गे ।
मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan. Mati @
01 / 11 / 2018
छत्तीसगढ़ महतारी के महिमा म बड़ सुग्घर रचना...बधाइयाँ
ReplyDeleteधन्यवाद भाई योगेश निर्मलकर जी
Deleteबहुत ही सुंदर रचना हावय सर
ReplyDeleteधन्यवाद मनोज यादव जी
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