कहां ले बसंत आही
पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही ।
चातर होगे बाग बगीचा, कहां आमा मऊराही।
नइहे टेसू फूल पलास अब, लइका मन नइ जाने
कंप्यूटर के जमाना आगे, बात कोनों नइ माने ।
पहिली के जमाना कस, कहां मजा अब पाही ।
पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही ।
नइ दिखे अब कौवा कोयल, कहां ले वोहा कुकही
ठुठवा होगे रुख राई ह, कहां ले वोहा रुकही ।
नइहे सुनइया कोनों राग ल, कइसे वोहा गाही।
पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही ।
रचना
महेन्द्र देवांगन "माटी "
पंडरिया छत्तीसगढ़
*प्रकृति ले बसंत आही,,,,*
ReplyDeleteशितहा पाए पेड़ हरियाही,प्रकृति ले बसंत आही !
पतझड़ रुख बड़ मुचमुचाही,आमा घला मऊराही !!
धनहा खार के मेढ़ म सुग्घर,बाढ़े फूल पलाश !
लइकुसा मन फूल चुहके म,आथे अड़बड़ मिठास !!
पाके सुवाद लइका मन,साँझकुन भागे-भागे जाही !
शितहा पाए पेड़ हरियाही,प्रकृति ले बसंत आही !!
बिहनिहा ले रमजत आँखी,कउवा काँव-काँव पारे !
अब बेरा मधुमास महिना म,कोइली कुहुक मारे !!
कहर-महर लागे आमा,मऊर मनखे ल भाही !
शितहा पाए पेड़ हरियाही,प्रकृति ले बसंत आही !!
रचना
*राजेश कोशले*,,,��
माकरी कुण्डा, कबीरधाम(छ.ग)
9993648836
rajeshkoshley@gmail. com
*प्रकृति ले बसंत आही,,,,*
ReplyDeleteशितहा पाए पेड़ हरियाही,प्रकृति ले बसंत आही !
पतझड़ रुख बड़ मुचमुचाही,आमा घला मऊराही !!
धनहा खार के मेढ़ म सुग्घर,बाढ़े फूल पलाश !
लइकुसा मन फूल चुहके म,आथे अड़बड़ मिठास !!
पाके सुवाद लइका मन,साँझकुन भागे-भागे जाही !
शितहा पाए पेड़ हरियाही,प्रकृति ले बसंत आही !!
बिहनिहा ले रमजत आँखी,कउवा काँव-काँव पारे !
अब बेरा मधुमास महिना म,कोइली कुहुक मारे !!
कहर-महर लागे आमा,मऊर मनखे ल भाही !
शितहा पाए पेड़ हरियाही,प्रकृति ले बसंत आही !!
रचना
*राजेश कोशले*,,,��
माकरी कुण्डा, कबीरधाम(छ.ग)
9993648836
rajeshkoshley@gmail. com
बहुत बढ़िया रचना लिखेव कोशले जी
Deleteबधाई आप ल