रुख ल झन काटो
रुख ल झन काटो
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रुख राई ल झन काटो,जिनगी के अधार हरे
एकर बिना जीव जंतु, अऊ पुरखा हमर नइ तरे
इही पेड़ ह फल देथे, जेला सब झन खाथन
मिलथे बिटामिन सरीर ल, जिनगी के मजा पाथन
सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन
थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन
सबो पेड़ ह कटा जाही त, कहां ले छांव पाहू
बढ़ जाही परदूसन ह, कहां ले फल फूल खाहू
चिरई चिरगुन जीव जंतु मन, पेड़ में घर बनाथे
थके हारे घूम के आथे, पेड़ में सब सुरताथे
झन उजारो एकर घर ल, अपन मितान बनावो
सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगावो
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महेन्द्र देवांगन माटी
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