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मस्ती के फुहार - होली के तिहार

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मस्ती के फुहार - होली के तिहार होली तिहार के नाम सुनते साठ मन में अलग उमंग अउ खुशी छा जाथे। आँखी के आघू मा रंग, गुलाल, पिचकारी, छेना,लकड़ी जइसे बहुत अकन चीज हा आँखी मा झूले ला धर लेथे। ये साल के होली- - ये साल होली ला 09 मार्च सन 2020 के रात मा जलाय जाही अउ 10 मार्च 2020 दिन मंगलवार के धुरेड़ी यानी रंग गुलाल खेले जाही। होली कब मनाय जाथे -------- होली के तिहार ला फागुन मास के पूर्णिमा के दिन मनाय जाथे। होली के तिहार हा बसंत ऋतु के सबले बड़े तिहार हरे। हमर भारत देश मा हिन्दू मुस्लिम सबो धरम के आदमी मन मिलजुल के ये तिहार ला मनाथे अउ एक दूसर में रंग लगा के बधाई देथे। होली के तैयारी  --------- होली तिहार के तैयारी हा बसंत पंचमी के दिन ले शुरु हो जाथे। ये दिन लइका मन हा होली डाँड़ मा अंडा पेड़ के लकड़ी ला पूजा करके गड़ा देथे अउ येकर बाद मा छेना लकड़ी ला लान - लान के रोज डारत जाथे। चंदा माँगे के परंपरा  ---------- होली तिहार के एक हप्ता पहिली लइका मन हा रस्सी बाँध के या रस्ता ला रोक के अवइया जवइया मन से चंदा माँगथे। ये चंदा के पइसा ला छेना लकड़ी नँगाड़ा अउ रंग गुलाल मा खरचा करथे। पहि

बासन्ती रँग

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बासन्ती रँग हुआ भोर अब देखो प्यारे, पूर्व दिशा लाली छाई। लगे चहकने पक्षी सारे, गौ माता भी रंभाई।। कमल ताल में खिले हुए हैं,  फूलों ने ली अँगड़ाई। मस्त गगन में भौंरा झूमे, तितली रानी भी आई।। सरसों फूले पीले पीले, खेतों में अब लहराये। कूक उठी है कोयल रानी, बासन्ती जब से आये।। है पलाश भी दहके देखो, आसमान में रँग लाई। पढ़े प्रेम की पाती गोरी, आँचल अपनी लहराई।। दिखे प्रेम का भाव अनोखा,  सुंदर चिकने गालों में । झूम रही है सांवल गोरी, गजरा डाले बालों में ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ (फोटो गुगल से साभार)

औघड़ दानी

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औघड़ दानी भोले बाबा औघड़ दानी, जटा विराजे गंगा रानी । नाग गले में डाले घूमे , मस्ती से वह दिनभर झूमे।। कानों में हैं बिच्छी बाला, हाथ गले में पहने माला । भूत प्रेत सँग नाचे गाये, नेत्र बंद कर धुनी रमाये।। द्वार तुम्हारे जो भी आते, खाली हाथ न वापस जाते। माँगो जो भी वर वह देते, नहीं किसी से कुछ भी लेते।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

स्वामी विवेकानंद

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स्वामी विवेकानंद जिसने भारत की माटी को, माथे तिलक लगाया है। और यहाँ के संदेशों को, जन जन तक पहुँचाया है।। घूम फिर विदेशों में भी , जिसने अलख जगाया है। संस्कृति का संरक्षक बन, विवेकानंद कहलाया है।। युवाओं को आगे बढ़ने,  जिसने राह दिखाया है। नमन करें इस दिव्य पुरुष को, जीना हमें सिखाया है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

बिन मौसम बरसात

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बिन मौसम बरसात बिन मौसम अब बरसा होवय, गिरय झमाझम पानी ।  धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। खेत खार मा करपा माढय , होवत हे नुकसानी । कइसे लानय अब किसान हा, बुड़गे सब्बो पानी ।। माथा धरके बइठे हावय, रोवय सबो परानी । धान पान हा कइसे बाँचय, होय करेजा चानी ।। करजा बोड़ी अब्बड़ हावय , छूट कहाँ अब पाबो। धान पान हा होवय नइहे, काला अब हम खाबो ।। खरचा चलही कइसे संगी , कइसे के जिनगानी । धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। बिन मौसम अब बरसा होवय, गिरय झमाझम पानी । धान पान हा कइसे बाँचय , होय करेजा चानी ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

जाड़ ह जनावत हे

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जाड़ ह जनावत हे चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। हसिया धर के सुधा दीदी ,खेत डहर जावत हे। धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे।। लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे। गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे।। धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे। मुँहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे।। अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। खेरेर-खेरेर लइका खाँसत,नाक ह बोहावत हे। डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे।। आनी-बानी के गोली-पानी, टानिक ल पियावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे। बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे।। जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। रांधत - रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे। लइका ल नउहा हे त ,कुड़क

जाड़ा

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जाड़ा जाड़ा अब्बड़ बाढ़ गे,  नइ होवत कुछु काम। दिन जल्दी बित जात हे, होवत झटकुन शाम ।। लकर धकर सब जाग के , बिहना काम म जाय । सेटर शाल ल ओढ़ के , जाड़ा रोज भगाय ।। रोवत लइका जाड़ मा , नाक घलो बोहाय। छेना लकड़ी बार के , लइका ला सेंकाय ।। पोंगा लानय काट के , दाई बरी बनाय । बादर हावय दोखहा , घेरी बेरी छाय ।। भाजी पाला जाड़ मा , अब्बड़ रोज मिठाय । राँधय भूँज बघार के , चाँट चाँट सब खाय ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" Priya Dewangan "Priyu"