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गाँव गँवई

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गाँव गँवई (लावणी छंद) गाँव गली हा सुघ्घर लागे , सबझन मिलजुल रहिथे जी । सुख दुख मा सब हाथ बँटाथे, बबा कहानी कहिथे जी ।। होत बिहनिया कुकरा बासे, सबझन हा उठ जाथे जी । धरे नाँगर ल मोहन भैया,  खेत डहर मा जाथे जी ।। कोठा मा नरियाये गइया ,  राउत भैया आथे जी । पैरा भूसा दाई देथे , बछरू ह मेछराथे जी ।। घर अँगना ला लीपे दाई,  भौजी चँउक पुराथे जी । खेले कूदे लइका मन हा, भैया गाना गाथे जी ।। हँसी ठिठोली दिनभर करथे , देवर अउ भौजाई जी । हाँसत रहिथे कका बबा मन, खावत मुर्रा लाई जी ।। सखी सहेली खेलत रहिथे, एक दुसर घर जाथे जी । नाता रिश्ता जुड़े सबो के, बइठे बर सब आथे जी ।। संझा होथे कका बबा मन , चँउरा मा सकलाथे जी । हालचाल सब पूछत रहिथे, दुख पीरा ल बताथे जी ।। सुघ्घर लागे मोर गाँव हा , घूमे बर तैं आबे जी ।  अइसन मया पिरीत ल संगी, कहाँ शहर मा पाबे जी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati 30/09/2019 ( छत्तीसगढ़ी भाषा में) 

बाल गणेश

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बाल गणेश मूसक ऊपर चढ़ कर आये , बाल गणेश हमारे द्वार । हाथ जोड़ कर भक्त खड़े हैं,  विनय करें सब बारंबार ।। फूल पान सब अर्पण करते , दीप जलाये घर पर आज। हम क्या जानें पूजा भगवन , आप बचाओ हमरे लाज।। लड्डू मोदक बहुत सुहाये, सभी लगाये तुमको भोग । पूजे जो भी सच्चे दिल से , मिट जाये जी सारे रोग।। बच्चे बूढे खुश हो जाये, मोदक खाये बाल गणेश । आशीर्वाद सभी को देते , काटे पल भर में सब क्लेश।। करें आरती दीप जलायें,  माँगें सब तुमसे वरदान । ज्ञान बुद्धि दो हमको दाता, मिट जाये सारे अज्ञान।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया छत्तीसगढ़ Priya Dewangan

छोटे छोटे हाथ जोड़कर

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छोटे छोटे हाथ जोड़कर ( ताटंक छंद) छोटे छोटे हाथ जोड़कर,  प्रभु को शीश झुकाता हूँ । पूजा पाठ न जानू भगवन , लड्डू भोग चढ़ाता हूँ ।। ज्ञान बुद्धि के दाता हो तुम,  संकट सब हर लेते हो । ध्यान मग्न हो जो भी माँगे , उसको तुम वर देते हो ।। सूपा जैसे कान तुम्हारे  , लड्डू मोदक खाते हो । भक्तों पर जब संकट आये, मूषक चढ़कर आते हो ।। पहिली पूजा करते हैं सब , बच्चों के तुम प्यारे हो । नहीं कभी भी गुस्सा करते,  सब भगवन से न्यारे हो ।। छोटे छोटे बालक हैं हम , शरण आपके आते हैं । दूर करो सब संकट प्रभु जी,  भजन आपके गाते हैं ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

पुरखा के इज्जत

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पुरखा के इज्जत जनम भर के कमाई ल , थोकिन मा उड़ावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। मर मर के काम करके , धन ल सकेलीस । लोग लइका पोसीस , अउ कतका दुख ल झेलीस।। बाढ़ गे टूरा तब , गली में मेछरावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। गली गली मा दारु पी के , लाल आँखी देखाथे । दाई ददा ल कुछु नइ समझे , मारे बर कुदाथे ।। काम बुता तो करना नइहे  , फोकट के घुमथे । जतका लोफ्फड़ टूरा हाबे , हटरी मा मिलथे ।। सबोझन मिल के , रंग रेली मनावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। मुड़ धर के बइठ गेहे , दाई ददा हा आज । करे बिनती भगवान से , रख ले हमर लाज ।। चढ़ गेहे टूरा मन ल , फैशन के बीमारी । ओकरे पाय नइ करय , छोटे बड़े के चिन्हारी ।। चसमा ल पहिन के , कनिहा ल मटकावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी (बोरसी  - राजिम वाले ) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

नमन करुं

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नमन करुं (ताटंक छंद) मातु पिता के श्री चरणों में,  नित नित शीश झुकाता हूँ । और गुरू के पद रज को मैं,  अपने माथ लगाता हूँ ।। कृपा करो हे मातु शारदा,  शरण आपकी आता हूँ । भूल चूक सब माफ करो माँ , तेरे ही गुण गाता हूँ ।। नमन करुं मैं धरती अंबर , नील गगन के तारों को । नमन करुं मैं चंदा सूरज , उनके सब उपकारों को ।। नमन करुं मैं ईष्ट देव को , कृपा सदा बरसाते हैं । नमन करुं उस सूक्ष्म जगत को , जो उजियारा लाते हैं ।। नमन करुं उस परि परिजन को,  जो सुख दुख में आते हैं । नमन करुं उन मित्र सभी को, हरदम राह बताते हैं ।। नमन करुं मैं सकल चराचर , नदियाँ पर्वत घाटी को । नमन करुं मैं इस धरती के,  कण कण पावन माटी को ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

तीजा - पोरा के तिहार

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तीजा - पोरा के तिहार छत्तीसगढिया सब ले बढ़िया । ये कहावत ह सिरतोन मा सोला आना सहीं हे । इंहा के मनखे मन ह बहुत सीधा साधा अउ सरल विचार के हवे । हमेशा एक दूसर के सहयोग करथे अउ मिलजुल के रहिथे । कुछु भी तिहार बार होय इंहा के मनखे मन मिलजुल के एके संग मनाथे । छत्तीसगढ़ ह मुख्य रुप ले कृषि प्रधान राज्य हरे । इंहा के मनखे मन खेती किसानी के उपर जादा निर्भर हे । समय - समय मा किसान मन ह अपन खुशी ल जाहिर करे बर बहुत अकन तीज - तिहार मनावत रहिथे । खेती किसानी के तिहार ह अकती के दिन ले शुरू हो जाथे । अकती के बाद में हरेली तिहार मनाथे । फेर ओकर बाद पोरा तिहार मनाय जाथे । पोरा तिहार  ---- पोरा पिठोरा ये तिहार ह घलो खेती किसानी से जुड़े तिहार हरे ।येला भादो महीना के अंधियारी पाँख ( कृष्ण पक्ष) के अमावस्या के दिन मनाय जाथे । ये तिहार ल विशेष कर छत्तीसगढ़,  मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र अउ कर्नाटक मा जादा मनाय जाथे । पोरा काबर मनाय जाथे ---- पोरा तिहार मनाय के पाछु एक कहावत ये भी हावय के भादो माह (अगस्त)  में खेती किसानी के काम ह लगभग पूरा हो जाय रहिथे । धान के पौधा ह बाढ़ जाय रहिथे । धान ह निकल

तोर सपना

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तोर सपना (गीतिका छंद  - श्रृंगार रस ) देख तोला आज मोरे , मन मचल अब जात हे । रात दिन गुनत रहिथौं मँय , तोर सपना आत हे ।। डार खोपा रेंगथस तैं , मोंगरा ममहात हे । देख के भौंरा घलो हा , तोर तीर म आत हे ।। आँज के काजर ल तैंहा , बाण हिरदे मारथस । गाल होथे लाल तोरे , खिल खिला के हाँसथस ।। काय जादू डार दे हस , तोर सुरता आत हे । देखथँव मँय जेन कोती , चेहरा झुल  जात हे रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 17/08/2019 ( छत्तीसगढ़ी भाषा में)