कातिक पुन्नी
*कातिक पुन्नी*
कातिक महिना पुन्नी मेला, जम्मो जगा भरावत हे।
हाँसत कूदत लइका लोगन, मिलके सबझन जावत हे।।
बड़े बिहनिया ले सुत उठ के, नदियाँ सबो नहावत हे।
हर हर गंगे पानी देवत, दीया सबो जलावत हे।।
महादेव के पूजा करके, जयकारा ल लगावत हे।
गीत भजन अउ रामायण के, धुन हा अबड़ सुहावत हे।।
दरशन करके महादेव के, माटी तिलक लगावत हे।
बेल पान अउ नरियर भेला, श्रद्धा फूल चढ़ावत हे।।
मनोकामना पूरा होही , जेहा दरशन पावत हे ।
कर ले सेवा साधु संत के, बइठे धुनी रमावत हे।।
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद चाचा जी 🙏🏻
Deleteजबरदस्त रचना
ReplyDeleteधन्यवाद🙏🏻
Deleteसुग्घर सृजन।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-१२-२०२०) को 'निसर्ग को उलहाना'(चर्चा अंक- ३९०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीय देवांगन जी आप अपनी रचनाओं के माध्यम से सदा हमारे दिलों में विद्यमान रहेंगे 💐 💐
धन्यवाद🙏🏻
Deleteइस माटी की महक हही निराली है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteThank you 🙏🏻
Deleteसुंदर बढ़ो आगे बढ़ो
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुंदर! अपनी मिट्टी की महक देता सृजन ,पावन सुघड़।
ReplyDeleteThank you sir
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