एक दीपक बन जायें


करो कुछ ऐसा काम साथियों,घर घर खुशियां लायें ।
भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें |
चारों तरफ है आज अंधेरा,किसी को कुछ न सूझे।
पथराई है सबकी आंखें,आशा की किरण बुझे ।
कर दें दूर अंधेरा अब,नया जोश हम लायें ।
भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें ।
शोषित पीड़ित दलित जनों का,हम सेवक बन जायें ।
सभी हैं अपने बंधु बांधव,इसको मार्ग दिखायें ।
कोई रहे न भूखा जग में,मिल बांटकर खायें ।
भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें ।
शिक्षा का संदेश लेकर,घर घर पर हम जायें ।
अशिक्षा अज्ञानता के, तम को दूर भगायें ।
नही उपेक्षित कोई जन अब,अपना लक्ष्य बनायें ।
भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें ।
ऊंच नीच और जाति पांति के,भेद को दूर भगायें ।
अमावश की कालरात्रि में,मिलकर दीप जलायें ।
त्योहारों की खुशियां हम सब,मिलकर साथ मनायें ।
भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें ||

रचनाकर
महेन्द्र देवांगन "माटी"
   पंडरिया
Mahendra Dewangan Mati

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