असली रावण को मारो

भर गया है पाप का घड़ा, अब तो इसे निकालो ।
नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो।
गाँव गली में घूम रहे हैं, साधुओं के वेश में ।
राम नाम का माला जपते, बाबाओं के भेष में ।
जागो अब हनुमान बनकर, पापी को पहचानो ।
नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो।
मुंह में राम बगल में छुरी, ऐसे प्रपंच रचाते हैं ।
लूट रहे हैं लोगों को और , झूठे वचन सुनाते हैं ।
नोच लो इसके नकली चेहरा, कूट कूट कर मारो ।
नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो।

विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
महेन्द्र देवांगन माटी ✍
      पंडरिया
8602407353
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