गरमी के दोहे
गरमी के दोहे
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तात तात हावा चले, पसीना ह बोहाय ।
कतको पानी पी तभो, टोंटा बहुत सुखाय।।
गरम गरम लू चलत हे, गोंदली ल तैं राख ।
मुंहूं कान ल बांध ले , कर जतन तहूं लाख ।।
चट चट भुइयां जरत हे, तीपत हे मुड़कान।
छांव नइहे रसता में, लगत हे हलाकान ।।
खटर खटर पंखा चले, नींद घलो नइ आत ।
मच्छर ह चाबत हाबे, कइसे कटही रात ।।
साग पान मिठाय नहीं, बासी बने सुहाय ।
चटनी पीस खाले तैं, आमा बने लुभाय ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
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