बेटी
बेटी ( सरसी छन्द )
(1)
मारव झन जी बेटी ला अब , येला लक्ष्मी जान ।
नाम कमाथे जग मा सुघ्घर, बेटा जइसे मान ।।
अबला नइहे नारी अब तो, हे दुर्गा अवतार ।
रक्षा अपन करे खातिर बर , धर लेथे तलवार ।।
आज चलावत हावय बेटी, मोटर गाड़ी रेल ।
खेलत हावय फूटबाल अउ , कुश्ती जइसे खेल ।।
(2)
भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान ।
होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।।
पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान ।
पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।।
कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज ।
अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़
Mahendra Dewangan Mati
मात्रा -- 16 , 11 = 27
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