जागव

जागव 

दूसर राज के कोलिहा मन , शेर सही गुर्रावत हे ।
हमरे राज में आके संगी , हमी ल आंखी देखावत हे 
छत्तीसगढ़ीया सबले बढ़िया, सुन सुन के आवत हे ।
थारी लोटा धर के आइस तेमन , अपन धाक जमावत हे ।
जेन ल हम ह जगा देहन , उही हक जमावत हे ।
हमर घर हे टूटहा फूटहा, वो महल अटारी बनावत हे ।
पहुना होथे भगवान बरोबर,  थारी थारी खवावत हे ।
उही थारी में छेदा करके, अब चार आंसू रोवावत हे ।
जागो जी सब छत्तीसगढ़ीया, अब तो होश में आवव ।
छत्तीसगढ़ के लाज रखे बर , सबझन आवाज उठावव ।

रचना
महेन्द्र देवांगन माटी 
पंडरिया कवर्धा 
छत्तीसगढ़ 
Mahendra Dewangan Mati 


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