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Showing posts from March, 2018

जय महावीर

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सत्य मार्ग पर चलकर जिसने, जीना हमको सीखलाया । दया करो सब प्राणियों पर , अहिंसा का मार्ग हमें बतलाया । सुख और दुख आते जीवन में, यह तो ईश्वर की रचना है । विचलीत ना हो कभी दुख में,  महावीर का कहना है । झूठ बोलना पाप है प्यारे , सत्य वचन से नाता जोड़ो । दया धर्म उपकार करो और, छल कपट करना छोड़ो । जीवन से मोक्ष का मार्ग बताया , जगत में जिसका नाम है । ऐसे *महावीर स्वामी* जी को , शत शत *माटी* का प्रणाम है । *महेन्द्र देवांगन* *माटी*

तब कविता बन जाती है

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कोयल जब गाती है, मीठी तान सुनाती है । अपने मधुर स्वर से,  बागों को गुंजाती है । तब कविता बन जाती है । बादल जब गरजता है, बिजली भी चमकती है । आसमान में काले काले , घनघोर घटा छा जाती है । तब कविता बन जाती है । गाय जब रंभाती है, बछड़े को पिलाती है । गोधुली बेला में अपने, पैरों से धूल उड़ाती है । तब कविता बन जाती है । घर आँगन में फुदक फुदक कर , चिड़िया जब चहचहाती है । पायल की रुनझुन आवाज सुन, गुड़िया रानी खिलखिलाती है । तब कविता बन जाती है । बारिश की पहली फुहार ,जब तन मन को भिगाती है। माटी की सौंधी खुशबू, जब चारों ओर फैल जाती है । तब कविता बन जाती है । चलती है मस्त हवाएं जब , बागों से खुशबू आती है । कोई चाँद सा चेहरा जब , आँखों में बस जाती है । तब कविता बन जाती है । माँ अपने कोमल हाथों से, रोटी जब खिलाती है । खुद भूखी रहकर भी जब , बच्चों को दूध पिलाती है । तब कविता बन जाती है । महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया 8602407353 Mahendra Dewangan Mati 21/03/2018

माटी के दोहे - 1

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(1) माटी के काया हरय,  माटी मा मिल जाय । झन कर गरब गुमान तैं , काम तोर नइ आय ।। (2) गाँव गाँव बाजा बजे,  गावत हावय फाग । रंग गुलाल उड़ात हे , झोंकय सब झन राग ।। (3) आमा मउरे बाग मा , कोयल मारत कूक । धनी मोर आवत हवे ,  जियरा होवत धूक ।। (4) पउधा लगाव जतन से,  सुंदर दिखही गाँव । खाबो फल हम रोज के,  मिलही हमला छाँव ।। (5) राम नाम अनमोल हे , येकर कर लव जाप । महामंत्र येहा हरे , कट जाही सब पाप ।। (6) मीठा बोली बोल ले , झन कर तैंहा भेद । एक बोल मधुरस सहीं, दूसर करथे छेद ।। (7) लक्ष्मी दुर्गा कालिका , नारी देवी जान । राखव येकर मान जी,  होये झन अपमान ।। (8) हाँसी खुशी बोल ले, जिनगी के दिन चार । कब आ जाही काल हा , कोइ न पाये पार ।। (9) दया करव सब जीव बर , कोनों ल झन सताव । सबके एके जीव हे , मिल बांट के खाव ।। (10) माता जी के दरश बर, जावत हव मय आज । देके दरशन मोर तैं , पूरा करबे काज ।। (11) काम करव अइसे तुमन , आवय सबके काम । लोगन सब सुरता करय,  जग मा होवय नाम ।। (12) ठगजग बाढ़त दिनों दिन, करत हावय धंधा । असली साधु चुप बइठे  , नकली लेवत चँदा ।। (13) सोना सोना स

लिखात नइहे

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लिखात नइहे लिखे बर बइठे हंव , फेर लिखात नइहे । गुनत हांवव मने मन , फेर गुनात नइहे । एको ठन कविता ला , महूं बना लेतेंव । फेसबुक अऊ वाटसप में, तुरते भेज देतेंव । सोचत हांवव मने मन , फेर सोंचात नइहे । लिखे बर बइठे हंव,  फेर लिखात नइहे  । कोन विषय में लिखंव , एला मय खोजत हंव । हास्य लिखव के सिंगार , एला मय सोचत हंव । धरहूं कहिथों पेन ला , फेर धरात नइहे । लिखे बर बइठे हंव,  फेर लिखात नइहे । महेन्द्र देवांगन "माटी"     पंडरिया 8602407353 11/03/18

कलिन्दर

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कलिन्दर ************ वाह रे कलिन्दर , लाल लाल दिखथे अंदर । बखरी मा फरे रहिथे  , खाथे अब्बड़ बंदर । गरमी के दिन में,  सबला बने सुहाथे । नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे । बड़े बड़े कलिन्दर हा , बेचाये बर आथे । छोटे बड़े सबो मनखे,  बिसा के ले जाथे । लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे । रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे । खाय के फायदा ला , डाक्टर तक बताथे । अब्बड़ बिटामिन  मिलथे,  बिमारी हा भगाथे । जादा कहूँ खाबे त  , पेट हा तन जाथे । एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे । महेन्द्र देवांगन माटी Mahendra Dewangan Mati 10/03/18

माटी के दोहे -- 2

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रोज रोज मारत हवय, गोली पाकिस्तान । समझौता ला टोरथे ,  लबरा ओला जान ।।1।। करजा लेके भाग गे , बड़े बड़े धनवान । देखत रहिगे देश हा,  होगे मरे बिहान ।।2।। करजा मा बूड़े हवय,  छोटे बड़े किसान । कइसे छूटन सोंच के,  देवत अपन परान ।।3।। बोलव भाखा प्रेम के,  सब झन हा मोहाय । बनथे बिगड़े काम हा,  मन मा खुशी समाय ।।4।। करकश बोली बोल के , मत कर तेंहा भेद । टुकड़ा टुकड़ा हो जथे,  दिल मा होथे छेद ।।5।। नशा नाश के जर हरय,  झन कर एकर साद । जाथे पइसा मान सब , कर देथे बरबाद ।।6।। नशा पान जेहा करय,  ओकर नइहे मान । उजड़े घर परिवार सब,  जिनगी बिरथा जान ।।7।। माला पहिरे घेंच मा , धरय साधु के भेस । ठग जग करके लोग ला , पहुँचाये जी ठेस ।।8।। कान्हा खेलय ब्रज मा , राधा डारय रंग । बांही पकड़े खींच के  , लिपटावत हे अंग ।।9।। साफ रखव घर-द्वार ला,रोग तीर नइ आय। दिन सुग्घर परिवार के,हाँसत बीते जाय।।10।। रामायण गीता पढ़व , चाहे पढ़व कुरान । दया धरम सेवा करव, बनबे तब इंसान ।।11।। मिलव जुलव सब प्रेम से,  करलव मीठा बात । करु वचन कँहू बोलबे,  परही जम के लात ।।12।। छत्तीसगढ़ी बोल के  , बढ़ावव एकर मान

मुनु बिलई

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मुनु बिलई ********* मुनु बिलई मुनु बिलई, हमर घर आथे मुनु बिलई, म्याऊ म्याऊ ओकर चिल्लई । लुका छुपी के  खेल खेलई, हमर घर आथे मुनु बिलई । मुसवा देखे पल्ला भगई , बिला भीतरी ओकर लुकई। खिसियाके फेर खंभा नोचई , हमर घर आथे मुनु बिलई । करिया भुरवा सादा बिलई , लइका मन के होथे रोवई । खाथे वोहा दूध मलई, हमर घर आथे मुनु बिलई । छानही छानही ओकर घुमई , कोठी ऊपर होथे लड़ई । मूछा में अपन ताव देवई  , हमर घर आथे मुनु बिलई । कारी भूरी आंखी देखई  , पूछी ला अपन अटियई , देख देख के ओकर गुररई । हमर घर आथे मुनु बिलई । मुनु बिलई मुनु बिलई, हमर घर आथे मुनु बिलई । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कवर्धा छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati 5/03/2018