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नदियाँ

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  नदियाँ (सार छंद) *************** कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने । मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।। सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती । सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।। खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते । उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।। स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती । विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।। गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा । भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।। विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते । माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।। शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ । पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।। रचना:- महेन्द्र देवांगन *माटी*  प्रेषक -(सुपुत्री प्रिया देवांगन *प्रियू*) पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़

रक्षाबंधन

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रक्षाबंधन ( सरसी छंद) आया रक्षा बंधन भैया, लेकर सबका प्यार ।  है अटूट नाता बहनों से   दे अनुपम  उपहार ।। राखी बाँधे बहना प्यारी, रेशम की है डोर। खड़ी आरती थाल लिये अब, होते ही वह भोर।। सबसे प्यारा मेरा भैया, सच्चे पहरेदार। है अटूट नाता बहनों से, दे अनुपम उपहार ।। हँसी ठिठोली करते दिनभर, माँ का राज दुलार । रखते हैं हम ख्याल सभी का, अपना यह परिवार ।। राखी के इस शुभ अवसर पर,  सजे हुए हैं द्वार । है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। तिलक लगाती है माथे पर, देकर के मुस्कान । वचन निभाते भैया भी तो, देकर अपने प्राण ।। आँच न आने दूँगा अब तो, है मेरा इकरार। है अटूट नाता बहनों से,  दे अनुपम उपहार ।। रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com

बीमारी के रोना

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बीमारी के रोना बीमारी के सब रोना हे। आ गे अब कोरोना हे। मुहूँ कान ला बाँधे राहव। बार बार अब धोना हे।। धुरिहा धुरिहा घुँच के राहव। मया पिरित नइ खोना हे। जींयत रहिबो दुनिया में ता । प्रेम बीज ला बोना हे।। सबो जगा बगरे बीमारी । बाँचे नइ गा कोना हे। सवधानी सब बरतो भैया । जिनगी भर अब ढोना हे।। हाँसत खेलत दिन बीताबो। फोकट के नइ रोना हे। ये माटी के सेवा करके। करजा सबो चुकोना हे।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़़ 

प्रकृति की लीला

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प्रकृति की लीला देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है। एक थपेड़े से जीवन यह, तहस नहस हो जाता है ।। करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है। करो प्रकृति का संरक्षण,  कहर अभी भी जारी है ।। मत समझो तुम बादशाह हो, कुछ भी खेल रचाओगे। पाशा फेंके ऊपर वाला, वहीं ढेर हो जाओगे ।। करते हैं जब लीला ईश्वर, कोई समझ न पाता है । सूखा पड़ता जोरों से तो, बाढ़ कभी आ जाता है ।। संभल जाओ दुनिया वालों, आई विपदा भारी है। कैसे जीवन जीना हमको, अपनी जिम्मेदारी है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

शिक्षा दान

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शिक्षा दान (दोहे) जाओ शाला रोज के, तभी मिलेगा ज्ञान । नाम करो इस देश का,बनो सभी विद्वान ।। शिक्षा धन अनमोल है,  कीमत इसकी जान। नहीं होय शिक्षा बिना, मानुष का सम्मान ।। मिले कहीं भी ज्ञान तो,  बैठो उसके पास। सुनो ध्यान से बात को, मन में रखकर आश।। भेदभाव को छोड़ कर,  बाँटो सब में ज्ञान । जो बाँटे हैं ज्ञान को , बने वही विद्वान ।। शिक्षा दान अमोल है, मन में खुशियाँ लाय। बाँटो जितना ज्ञान को , उतना बढ़ता जाय।। बनो नहीं कंजुस कभी,  खुलकर बाँटो ज्ञान । इधर उधर सब छोड़कर, पुस्तक पर दो ध्यान ।। पढो लिखो सब प्रेम से, बन जाओ विद्वान । खोज करो हर रोज सब,ज्ञान और विज्ञान ।। कर लो शिक्षा दान सब, कर्म करो यह पुण्य । मिले शांति मन को तभी, नहीं रहेगा शून्य ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

बरखा रानी आई है

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बरखा रानी आई है (ताटंक छंद) गड़गड़ गरजे आसमान से,  घोर घटा भी छाई है। छमछम करती हँसते गाती, बरखा रानी आई है।। झूम उठी है धरती सारी, पौधे सब मुस्काये हैं । चहक उठी है चिड़िया रानी,  भौंरा गाना गाये हैं ।। ठूँठ पड़े पेड़ों में भी तो,  हरियाली अब छाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी  आई है।। लगे छलकने ताल तलैया , पोखर सब भर आये हैं । कलकल करती नदियाँ बहती,  झरने गीत सुनाये हैं ।। चमक चमक कर बिजली रानी,  नया संदेशा लाई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। खुशी किसानों की मत पूछो,  अब तो फसल उगाना है। नये तरीकों से खेतों में,  नई क्रांति अब लाना है।। माटी की है महक निराली, फसलें भी लहराई है। छमछम करती हँसते गाती,  बरखा रानी आई है।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendradewanganmati@gmail.com

सपने

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बंद नयन के सपने मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में । तू है चंचल मस्त चकोरी, हरदम तू मुस्काती है। डोल उठे दिल की सब तारें, कोयल जैसी गाती है।। पायल की झंकार सुने हम, खो जाते हैं ख्वाबों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। पास गुजरती गलियों में जब, खुशबू तेरी आती है। चलती है जब मस्त हवाएँ,  संदेशा वह लाती है।। उड़ती तितली झूमें भौरें , सुंदर लगते बागों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। कैसे भूलें उस पल को जो, दोनों साथ बिताये हैं । हाथों में हाथों को देकर, वादे बहुत निभाये हैं ।। छोड़ चली अब अपने घर को, रची मेंहदी हाथों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। मिल बैठे थे हम दोनों जब, ऐसी बातों बातों में । बंद नयन के सजते सपने, झाँक रही हैं यादों में ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati