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आ गे हरेली तिहार

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आ गे हरेली तिहार  (गीत) आगे आगे हरेली तिहार जी संगी , जुरमिल सबे मनाबो । नांगर बइला के पूजा करबो , चाँउर के चीला चढाबो ।। आगे आगे हरेली तिहार .............................. हरियर हरियर दिखत हे भुइयाँ ,खेती खार लहराये । छलकत हावय नदियाँ तरिया,  सबे के मन ला भाये ।। छत्तीसगढ़ के सुघ्घर माटी,  माथे तिलक लगाबो । आगे आगे हरेली तिहार ..................... .......... नांगर बक्खर के पूजा करबो , गरुवा ल लोंदी खवाबो । राउत भैया मन राखे रहिथे , दसमूल कांदा खाबो ।। हरियर हरियर लीम के डारा , घर घर आज लगाबो । आगे आगे हरेली तिहार ................................ बरा सोंहारी ठेठरी खुरमी , चीला के भोग लगाबो । खो खो कबड्डी फुगड़ी बिल्लस , सब्बो खेल खेलाबो ।। लइका मन सब गेड़ी मचही , सबझन खुशी मनाबो । आगे आगे हरेली तिहार ................................. गीतकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

नाग पंचमी

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" नागपंचमी " के तिहार हिन्दू समाज में देवी - देवता के पूजा करे के साथ - साथ पशु - पक्षी अऊ पेंड़ - पौधा के भी पूजा  करे  के  रिवाज हे । सब जीव - जन्तु उपर दया करना हिन्दू समाज के परम्परा हरे । उही परंपरा के अंतर्गत हमर समाज में सांप के भी पूजा करे जाथे । सावन महीना के अंजोरी पाँख के पंचमी के दिन नाग देवता के पूजा करे जाथे । ये दिन नाग पंचमी के रूप में मनाये जाथे । नाग पंचमी के दिन गाँव - गाँव में विशेष उत्साह रहिथे । ये दिन धरती ल खोदना मना रहिथे । आज के दिन नाग देवता ल दूध पियाय के परंपरा हे । एकर पहिली माटी के नाग देवता या चित्र बनाके ओकर पूजा करे जाथे । नारियल, धूप , अगरबत्ती जलाके दूध चढ़ाये जाथे अऊ कोनो परकार के हानि मत पहुंचाय कहिके विनती करे जाथे । आज के दिन गाँव - गाँव में कुसती प्रतियोगिता होथे । जेमे आसपास के बड़े - बड़े पहलवान मन आके अपन दांव पेंच देखाथे , अऊ वाहवाही लूटथे । हमर देश ह कृषि प्रधान देश हरे । खेत मन में सांप ह  रहिथे अऊ जीव - जन्तु ,  मुसवा आदि मन फसल ल नुकसान पहुंचाथे ओकर से भी रकछा करथे । एकरे पाय एला छेत्रपाल भी  कहे जाथे । साप ह बिना क

शिव शंकर

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शिव शंकर शिव शंकर ला मान लव , महिमा एकर जान लव । सबके दुख ला टार थे , जेहा येला मान थे ।। काँवर धर के जाव जी  , बम बम बोल लगाव जी । किरपा ओकर पाव जी  , पानी खूब चढ़ाव जी ।। तिरशुल धर थे हाथ में  , चंदा चमके माथ में । श्रद्धा रखथे नाथ में  , गौरी ओकर साथ में ।। सावन महिना खास हे , भोले के उपवास हे । जेहर जाथे द्वार जी  , होथे बेड़ा पार जी ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"  (शिक्षक) पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

अण्डा के फण्डा

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अण्डा के फण्डा ( Egg ) कोनो खावत सेव केरा , कोनो अण्डा खावत हे । लइका मन हा मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। कोनों ह विरोध करत , कोनों ह खवावत हे । असमंजस मे हे सरकार ह , मिटिंग में बलावत हे ।। कोनों काहत बंद करव , कोनों गुण ल गावत हे । लइका मन ह मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। गुरुजी मन घेरी बेरी , पालक के घर जावत हे । अण्डा चाही के केरा चाही , सहमति ल लिखावत हे ।। राजनीति के फण्डा मा  , अण्डा ह उबलावत हे । लइका मन ह मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। पहिली के जमाना ह , अब्बड़ सुरता आवत हे । पहिली कापी में मिले अंडा , अब थारी में आवत हे ।। अब पढ़े ल नइ आय तभो , मुरगा नइ बनावत हे । लइका मन ह मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम       छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

पानी बरसा दे

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पानी बरसा दे तोर अगोरा हावय बादर , सबझन देखत रस्ता । कब आबे अब तिही बता दे , हालत होगे खस्ता ।। धान पान सब बोंयें हावय , खेत म नइहे पानी । कोठी डोली सुन्ना परगे , चलय कहाँ जिनगानी ।। बादर आथे उमड़ घुमड़ के , फेर कहाँ चल देथे । आस जगाथे मन के भीतर,  जिवरा ला ले लेथे ।। माथा धर के सबझन रोवय , कइसे करे किसानी । सुक्खा हावय खेत खार हा , नइहे धान निशानी ।। किरपा करहू इन्द्र देव जी  , जादा झन तरसावव । विनती हावय हाथ जोड़ के , पानी ला बरसावव ।। सौंधी सौंधी खुशबू हा जब , ये माटी ले आही । माटी के खुशबू ला पा के , माटी खुश हो जाही ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम      छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

शोभन छंद

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(1) आज बदलत हे जमाना  , देख ओकर चाल । बात ला माने नहीं अउ , ठाड़ राखय बाल ।। बाप हा बरजत रथे गा , मान तैंहर बात । मारथे टूरा फुटानी , गुन कभू नइ गात ।। (2) पेड़ पौधा ला लगाके , छाँव सुघ्घर पाव । फूल फर मिलही सबो ला , बाँट के सब खाव ।। गाँव आही आदमी मन , देख के खुश होय । जागही अब भाग सबके , बीज ला जब बोय ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati विधान  -- शोभन छंद 14 + 10 = 24 मात्रा 3 , 10 , 17 , 21 , 24 मात्रा लघु लाललाला  लाललाला, लाल लाल ललाल 2122        2122 ,  21  21  121

शंकर छंद

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(1) आजकाल के लइका मन हा , मानय नहीं बात । घूम घूम के खावत रहिथे , मेछा ल अटियात ।। धरे हाथ मा मोबाइल ला , चलावत हे नेट । कोनों चिल्लावय बाहिर ले , खोलय नहीं गेट ।। ************************************ (2) तीपे हावय भुइयाँ अब्बड़  , जरय चटचट पाँव । सुरताये बर खोजे सबझन , दिखत नइहे छाँव ।। एसो गरमी बाढ़े हावय , चलत अब्बड़ झाँझ । निकलत नइहे घर ले कोनों , सबो घूमय साँझ ।। ************************************ (3) पेड़ सबो कट गेहे संगी , मिलत नइहे छाँव । भटकत हावय जीव जंतु सब , कहाँ मिलही ठाँव ।। नवतप्पा के गरमी भारी , जरत हावय पाँव । मुश्किल होगे निकले बर जी , गाँव कइसे जाँव ।। ***************************************** (4) तोर शरण मा आवँव मइया , मोर रखले लाज । गलती झन होवय काँही वो ,बनय बिगड़े काज ।। सुमिरन करके तोरे माता , लिखँव मँय मतिमंद । कंठ बिराजो शारद मइया , रोज गावँव छंद । ***************************************** (5) गरजत हावय बादर संगी , घटा हे घनघोर । रहि रहि अब्बड़ बिजुरी चमके , ह्दय काँपे मोर ।। रापा कुदरी सकला करके , चलव खेती खार । आय किसानी के दिन