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गजरा वाली

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गजरा वाली ( कुण्डलियाँ) गजरा डारय बाल मा , आँखी ला मटकाय । चटक मटक हे रेंगना , बेनी ला लहराय ।। बेनी ला लहराय , माथ मा बिन्दी चमके । कनिहा ला मटकाय , हाथ मा चूरी खनके । लाल गुलाबी होंठ , गजब के मारय नखरा । नागिन जइसे चाल , खोंच के रेंगय गजरा । चूरी पहिरे हाथ मा , खनर खनर खनकाय । बेनी गजरा डार के , महर महर ममहाय ।। महर महर ममहाय , पाँव मा पहिरे पायल । मारे तिरछी नैन , करे वो सबला घायल । लाल लाल हे होंठ , चलाये दिल में छुरी । नथली पहिरे नाक  , बजाये अब्बड़ चूरी।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

सर्दी आई

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सर्दी आई ( चौपाई छंद) सुबह सुबह अब चली हवाएँ  । सर्दी आई जाड़ा लाए । ओढे कंबल और रजाई । हाथ ठिठुरते देखो भाई ।। धूप लगे अब बड़े सुहाना  । बाबा बैठे गाये गाना ।। भजिया पूड़ी सबको भाये । गरम गरम चटनी सँग खाये ।। टोपी पहने काँपे लाला । आँखों में है चश्मा  काला ।। आते झटपट खोले ताला । राम नाम का जपते माला ।। बच्चे आते शोर मचाते । लाला जी को बहुत सताते ।। धूम धड़ाका करते बच्चे । लेकिन मन के बिल्कुल सच्चे ।। ताजा ताजा फल को खाओ । रोज सबेरे घूमने जाओ ।। सुबह शाम अब दौड़ लगाओ । बीमारी सब दूर भगाओ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ m ahendra Dewangan Mati 8602407353

कज्जल छंद

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कज्जल छंद नइहे एसो धान पान । रोवत हावय गा मितान । बूड़े करजा मा किसान । कइसे बचही हमर जान ।।1।। सुक्खा हावय खेत खार । भुँइया मा परय दनगार । कइसे छुटबो अब उधार । माफ कर करजा सरकार ।।2।। ********************************* लहू दान सुन ले संगी बात मान । कर ले तैंहा लहू दान । येला सबले बड़े जान । बाँचे कतको के परान ।।3।। ************************************ नशा झनकर तैंहा नशा पान । येला तैंहा जहर मान । बोले मनखे आन तान । जाथे कतको के परान ।।4।। ************************************** जंगल झाड़ी अब बचाव । पउधा ला के सब लगाव । सुघ्घर दिखही सबो गाँव । सुरताबो गा हमन छाँव ।।5।। ******************************** बाढ़त हावय रोज घाम । चटचट जरथे हमर चाम । पाके रुख मा अबड़ आम । बेंचे ले गा मिलय दाम ।।6।। ******************************** पेड़ लगावव खेत खार । छइहाँ रइही मेड़ पार । सुरताबे तैं बइठ यार । खातू कचरा बने डार ।।7।। ******************************* महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan. Mati  @ विधान- ----- पद संख्या 

मोर छत्तीसगढ़ ( गीत)

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मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे । गुरतुर गुरतुर भाखा बोली , सबके मन ला भा गे ।। मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा .......... ................               भेदभाव नइ जानय इँहा  ,                 सबके सेवा करथे ।                मिल बाँट के खाथे सुघ्घर ,                 दुख पीरा ला हरथे । धरती दाई के सेवा खातिर, बिहना ले सब जागे । मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।                आनी बानी तीज तिहार ला ,                  मिलके सबो मनाथे ।                 ठेठरी खुरमी चीला सोंहारी ,                    घर घर सबो बनाथे । गुलगुल भजिया अबड़ मिठाथे , थरकुलिया मा माँगे । मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।                  सीधा सादा मनखे इँहा ,                   गारी गल्ला नइ जानय ।                    घर मा आथे कोनों सगा ,                      देवता सही मानय । देख इँहा के रीत रिवाज ला , दुनिया भर मा छा गे । मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा)       छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan. Mati @ 01

गिनती (बाल गीत)

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बाल गीत गिनती एक चिड़िया आती है, चींव चींव गीत सुनाती है । दो दिल्ली की बिल्ली हैं  , दोनों जाती दिल्ली हैं । तीन चूहे राजा हैं  , रोज बजाते बाजा हैं । चार कोयल आती हैं  , मीठी गीत सुनाती हैं । पाँच बन्दर बड़े शैतान,  मारे थप्पड़ खींचे कान । छः तितली की छटा निराली , उड़ती है वह डाली डाली । सात शेर जब मारे दहाड़ , काँपे जंगल हिले पहाड़ । आठ हाथी जंगल से आये , गन्ने पत्ती खूब चबाये । नौ मयूर जब नाच दिखाये , सब बच्चे तब ताली बजाये । दस तोता जब मुँह को खोले , भारत माता की जय जय बोले । महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

असली रावण मारो

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असली रावण मारो गली गली रावण घूमत हे , ओकर भुररी बारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। रोज करत हे अत्याचारी , आँखी ला देखाथे । करथे दादागीरी अब्बड़ , तलवार ला उठाथे ।। हिम्मत करके आघू आवव , मिलके सब ललकारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। जुंवा चित्ती सटटा मटका , रोज अबड़ खेलाथे । गाँव गाँव मा दारु बेंच के , पइसा अबड़ कमाथे ।। दिखत हवय गा साव बरोबर , आँखी अपन उघारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। बेटी माई हरण करत हे , इज्जत रोज लूटथे । पर के सुख ला देख नइ सकय , ओकर आँख फूटथे ।। अइसन पापी रावण मन ला , आगी मा अब डारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण  मारो ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 19/10/2018

माँ

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माँ मंदिर में तू पूजा करके,  छप्पन भोग लगाये । घर की माँ भूखी बैठी है , उसको कौन खिलाये । कैसे तू नालायक है रे , बात समझ ना पाये । माँ को भूखा छोड़ यहाँ पर , दर्शन करने जाये ।। भूखी प्यासी बैठी है माँ , दिनभर कुछ ना खाये । मांगे जब वह पानी तो फिर , क्यों उसपर झल्लाये ।। करे दिखावा कितना देखो , मंदिर  चुनर चढ़ाये । घर की माई साड़ी मांगे , उसको तो धमकाये ।। पाल पोसकर बड़ा किया जो , उस पर तरस न खाये । भूल गये संस्कारों को सब , लज्जा भी ना आये ।। कैसे  होगी खुश अब माता,  अपने दिल से बोलो । पछताओगे तुम भी बेटा ,  आँखें अब तो खोलो ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati सार छंद 16 + 12 = 28 मात्रा पदांत --- 2 लघु या 1 गुरु