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बरबाद होगे

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बरबाद होगे *************** बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । सूरा सहीं घोन्डे हाबे 2, कइसन ए अजाद होगे। बरबाद होगे बरबाद होगे भैया .............................. एक पौवा पीथे ताहन, आंखी ल देखाथे । दूसर पौवा चढथे ताहन, शेर सही गुरराथे । रंग रंग के गारी देके, झगरा ल मताथे बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । लोग लइका भूखन मरत, ओकर नइहे चिंता । गली गली में घूमत हाबे, होवत ओकर हिंता । करजा में बूड़े हाबे, भागत हे लुकाके । बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । जेब में रहिथे पइसा ताहन, अब्बड़ मटमटाथे । मुरगा मटन खाथे अऊ , चार झन ल खवाथे । मारत हे पुटानी अऊ , खेत खार बेचागे । बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । एकरे सेती काहत हावों , झन पीयो जी दारु । लोग लइका के चेत करले , सुन ले ग समारु । शरीर ह खोखला होके, बढ जाथे बीमारी । बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के  सब बरबाद होगे । महेन्द्र देवांगन माटी    पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @ 8602407353

माता की कृपा

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माता की कृपा *************** मां दुर्गा के चरणों में मैं, अपना शीश झुकाता हूँ । तेरे दर पे आकर माता, श्रद्धा के फूल चढाता हूँ । कोई न हो जग में दुखी मां , तेरी कृपा बनी रहे । बस इसी आशा से मैं, लोगों को भजन सुनता हूँ । जिस पर तेरी कृपा पड़े मां , भाग्य बदल जाता है । पल भर में ही वह मानव , रंक से राजा बन जाता है । जहां जहां तक नजरें जाती , सब पर तेरी माया है । प्रकृति का कण कण भी, तुझ पर ही बलि जाता है । तेरे दर पे आकर माता, मन का बगिया खिलता है । भूल जाता हूँ दुनियादारी, सुकून मन को मिलता है । तेरी याद में हर दिन माता, मैं ये भजन लिखता हूँ । तेरी कृपा के बिना तो माँ,  पत्ता भी न हिलता है । रचना  Mahendra Dewangan Mati महेन्द्र देवांगन "माटी"   पंडरिया (छत्तीसगढ़ ) मो नं -- 8602407353 Email - mahendradewanganmati@gmail.com

जाड़ ह जनावत हे

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जाड़ ह जनावत हे ************** चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे। हसिया धर के सुधा ह,खेत डाहर जावत हे। धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे। लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे। पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे। गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे। मुहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे। अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। खेरेर-खेरेर लइका खांसत,नाक ह बोहावत हे डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे। आनी-बानी के गोली-पानी,अऊ टानिक ल पियावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे। जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे।। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। रांधत - रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे लइका ल नउहा हे त ,कुड़कुड़-कुड़कु

माटी के दीया जलावव

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माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव। माटी के दीया  ........................ बइठे हे कुमहारिन दाई, देखत हाबे रसता । राखे हाबे माटी के दीया, बेचत सस्ता सस्ता । का सोंचत हस ले ले संगी, घर घर  में बगरावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव झालर मालर छोड़ो संगी, दीया ल बगरावव। माटी के दीया जलाके संगी, लछमी दाई ल बलावव । घर में आही सुख सांति, जुर मिल तिहार मनावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल से होवत हाबे, जन धन सबमे हानि । हमर देस में बिकरी करके, करत हे मनमानी । आंख देखावत हमला ओहा, वोला तुम दुतकारव माटी के दीया जलावव संगी,माटी के दीया जलावव । आवत हे देवारी तिहार, घर कुरिया ल लीपावव । गली खोर ल साफ  रखो, स्वच्छता के संदेश लावव। ओदरत हाबे घर कुरिया ह, सब ल तुम छबनावव। माटी के दीया जलावव संगी, अंधियारी ल भगावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी Mahendra Dewangan Mati संपर्क -- 8602407353

एक दीपक बन जायें

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करो कुछ ऐसा काम साथियों,घर घर खुशियां लायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें | चारों तरफ है आज अंधेरा,किसी को कुछ न सूझे। पथराई है सबकी आंखें,आशा की किरण बुझे । कर दें दूर अंधेरा अब,नया जोश हम लायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें । शोषित पीड़ित दलित जनों का,हम सेवक बन जायें । सभी हैं अपने बंधु बांधव,इसको मार्ग दिखायें । कोई रहे न भूखा जग में,मिल बांटकर खायें । भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें । शिक्षा का संदेश लेकर,घर घर पर हम जायें । अशिक्षा अज्ञानता के, तम को दूर भगायें । नही उपेक्षित कोई जन अब,अपना लक्ष्य बनायें । भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें । ऊंच नीच और जाति पांति के,भेद को दूर भगायें । अमावश की कालरात्रि में,मिलकर दीप जलायें । त्योहारों की खुशियां हम सब,मिलकर साथ मनायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें || रचनाकर महेन्द्र देवांगन "माटी"    पंडरिया Mahendra Dewangan Mati

असली रावण को मारो

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भर गया है पाप का घड़ा, अब तो इसे निकालो । नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो। गाँव गली में घूम रहे हैं, साधुओं के वेश में । राम नाम का माला जपते, बाबाओं के भेष में । जागो अब हनुमान बनकर, पापी को पहचानो । नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो। मुंह में राम बगल में छुरी, ऐसे प्रपंच रचाते हैं । लूट रहे हैं लोगों को और , झूठे वचन सुनाते हैं । नोच लो इसके नकली चेहरा, कूट कूट कर मारो । नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो। विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ महेन्द्र देवांगन माटी ✍       पंडरिया 8602407353 💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आजादी का पर्व

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आजादी का पर्व *************** आजादी का पर्व मनाने, गाँव गली तक जायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । नहीं भूलेंगे उन वीरों को , देश को जो आजाद किया । भारत मां की रक्षा खातिर, जान अपनी कुर्बान किया । आज उसी की याद में हम सब , नये तराने गायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह,  भारत के ये शेर हुए । इनकी ताकत के आगे, अंग्रेजी सत्ता ढेर हुए । बिगुल बज गया आजादी का, वंदे मातरम गायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । मिली आजादी कुर्बानी से,  अब तो  नही जाने देंगे । चाहे कुछ हो जाये फिर भी, आंच नहीं आने देंगे । संभल जाओ ओ चाटुकार तुम, अब तो शोर मचायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, सबको आगे आना होगा । स्कूल हो या मदरसा सब पर , तिरंगा फहराना होगा । देशभक्ति का जज्बा है ये , मिलकर साथ मनायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा,  शान से हम लहरायेंगे । Mahendra Dewangan Mati       महेन्द्र देवांगन माटी            पंडरिया            छत्तीसगढ़          13/08