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बरसा के दिन आवत हे

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बरसा के दिन आवत हे टरर टरर मेचका गाके, बादर ल बलावत हे । घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे । तरबर तरबर चांटी रेंगत, बीला ल बनावत हे । आनी बानी के कीरा मन , अब्बड़ उड़ियावत हे । बरत हाबे दीया बाती, फांफा मन झपावत हे  । घटा घनघोर छावत,  बरसा के दिन आवत हे । हावा गररा चलत हाबे, धुररा ह उड़ावत हे । बड़े बड़े डारा खांधा , टूट के फेंकावत हे  । घुड़ुर घाड़र बादर तको, मांदर कस बजावत हे । घटा घनघोर छावत  , बरसा के दिन आवत हे । ठुड़गा ठुड़गा रुख राई के, पाना ह उलहावत हे । किसम किसम के भाजी पाला, नार मन लमावत हे । चढहे हाबे छानही में, खपरा ल लहुंटावत हे । घटा घनघोर छावत  , बरसा के दिन आवत हे । सबो किसान ल खुसी होगे , नांगर ल सिरजावत हे । खातू माटी लाने बर , गाड़ा बइला  सजावत हे । सुत उठ के बड़े बिहनिया, खेत खार सब जावत हे । घटा घनघोर छावत  , बरसा के दिन आवत हे । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी " 15/06/2017

कहां ले बसंत आही

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पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही । चातर होगे बाग बगीचा, कहां आमा मऊराही। नइहे टेसू फूल पलास अब, लइका मन नइ जाने कंप्यूटर के जमाना आगे, बात कोनों नइ माने । पहिली के जमाना कस, कहां मजा अब पाही । पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही । नइ दिखे अब कौवा कोयल, कहां ले वोहा कुकही ठुठवा होगे रुख राई ह, कहां ले वोहा रुकही । नइहे सुनइया कोनों राग ल, कइसे वोहा गाही। पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी " पंडरिया छत्तीसगढ़

"तोर पंइयां लागंव वो"

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******************** मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोर पंइयां लागंव वो 2 मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोर चरन पखारौं वो-2 तोर कोरा में गियानी मुनी,बीर सपूत सब आइस ए माटी में माथ नवाके, जीवन सफल बनाइस चंदन जइसे माटी तोरे -2 माथे तिलक लगावव वो मोर छत्तीसगढ़ .............. रतनपुर महामाया बिराजे, डोंगरगढ़ बम्लाई बस्तर में बस्तरहीन बिराजे,संबलपुर सम्बलाई धमतरी में बिलई माता -2,सबला मेंहा मनावव वो मोर छत्तीसगढ़ ----------------------------। महानदी अरपा अऊ पैरी, तोरे पांव धोवाथे खारून सोढू शिवनाथ ह,तोर दरश बर आथे शंकनी डंकनी लहरा मारे -2,आरती तोर उतारवौ वो मोर छत्तीसगढ़ ---------------------------। सोना खान के सोना चमके, देवभोग के हीरा बैलाडीला के लोहा निकले, बनके तोरे पीरा कोरबा के तोर बिजली चमके -2,जग में अंजोर बगरावों वो मोर छत्तीसगढ़ ----------------------------------। रचना ©महेन्द्र देवांगन माटी 2017

सुप्रभात

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मुंदरहा ले उठके, कूकरा ह चिल्लावत हे बिहनिया होगे कहिके, सबला बतावत हे फूल गेहे चारो कोती ,फूलवारी में फूल माटी म खुसबू ल,गाँव भर बगरावत हे । बिहनिया के जय जोहार महेन्द्र देवांगन माटी Mahendradewanganmati ♏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹👏

मदर डे

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वाह रे जमाना, कइसे "मदर डे " मनावत हे । बात ल मानत नइहे, वाटसप ल चलावत हे । दुनिया भरके ग्रुप में, बधाई सबला देवत हे । खटिया में परे हे दाई, कोनों सुध नइ लेवत हे । जानो मानों श्रवण कस, भक्ति ल देखावत हे । मांगत हाबे पानी दाई, तब अब्बड़ खिसियावत हे उपर छावा बधाई भेज के, मदर डे मनावत हे । आनी बानी के फोटो खींचके, जी ल कल्लावत हे। मां तो हरे करुणा के मूरती, दुख ओकर पहिचानव एक दिन से कुछु नइ होये, रोज मदर डे मनावव । रोज मदर डे मनावव, रोज मदर डे मनावव । महेन्द्र देवांगन माटी ♏✍ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

झांझ चलत

झांझ चलत भाई, झांझ चलत । सरी मंझनिया , झांझ चलत । एसो गरमी, बहुत परत । झांझ चलत , भाई झांझ चलत । सुक्खा गेहे , सब रुख राई । बांचे नइहे, एको पत्ता भाई । चिरई चिरगुन , पियास मरत । झांझ चलत भाई, झांझ चलत। सरी मंझनिया , झांझ चलत । महेन्द्र देवांगन माटी ✍ ☀🌟☀💥☀☄🌟☄☀

गरमी बाढ़त हे

गरमी बाढ़त हे *************** दिनों दिन गरमी बाढ़त, पसीना चुचवावत हे। कतको पानी पीबे तबले, टोंटा ह सुखावत हे। कुलर पंखा काम नइ करत, गरम हावा आवत हे। तात तात देंहे लागत, पसीना में नहावत हे । घेरी बेरी नोनी बाबू, कुलर में पानी डारत हे । चिरई चिरगुन भूख पियास में, मुँहू ल फारत हे। नल में पानी आवत नइहे, बोर मन अटावत हे। तरिया नदिया सुक्खा होगे, कुंवा मन पटावत हे। कतको जगा पानी ह, फोकट के बोहावत हे। झन करो दुरुपयोग संगी, माटी ह गोहरावत हे। *********** रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम