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Showing posts from 2018

छत्तीसगढ़ वंदना

महानदी अउ अरपा पैरी , इंहा के मैहर थाती अंव । छत्तीसगढ़ के माटी अंव , मय छत्तीसगढ़ के माटी अंव । देवभोग बस्तर सरगुजा , सबमे रतन भराये हे । राजिम रायपुर बिलासपुर में,  मया के बोली समाये हे । दर्शन कर लो महामाया के, केशकाल के घाटी अंव । छत्तीसगढ़ के माटी अंव -------

नवा साल

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नवा साल धरे हवय मुरगा मटन , बोतल ल हलावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । वाह रे टेसिया टूरा , गली मा मटमटावत हे । चुँदी हावय कुकरी पाँख , हनी सिंह जइसे कटवावत हे । सबो संगवारी मिल के , पिकनिक में जावत हे । घोण्डे हावय सूरा सही  , नवा साल मनावत हे । नशा पान के आदी हावय , गुटखा तंबाखू खावत हे । नाचत हावय डी जे में  , रंग रंग के गाना गावत हे । लाज शरम तो बेचा गेहे , कनिहा ला मटकावत हे । नाक तो पहिली ले कटा गेहे , अब कान ला छेदावत हे । भट्टी डाहर चुप्पे जा के , लाइन ला लगावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । यहा का जमाना आ गे , बबा हा खिसियावत हे । टूरा मन हा बात नइ माने , बोतल ला हलावत हे । धरे हे मोबाइल ला , रंग रंग के गोठियावत हे । टूरी टूरा हाथ धर के , कनिहा ला मटकावत हे । अपन संस्कृति ला भुला के , विदेशी ला अपनावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । नशा पान ला छोड़ंव संगी , सादा जीवन बीतावव । छोड़ विदेशी रिवाज ला , अपन संस्कृति अपनावव । अंग्रेजी साल छोड़ के , हिन्दू नव वर्ष मनावव । इंहा के रीति रिवाज ला , दुनिया में बगरावव

हाय रे मोर गोंदा फूल

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हाय रे मोर गोंदा फूल  हाय रे मोर गोंदा फूल , आँखी आँखी तैंहा झूल । चुकचुक ले दिखथस तैंहा , कइसे जाहूँ तोला भूल ।। मोहनी कस रुप हे तोर , लेथस तैंहा जीव ला मोर । का जादू तैं डारे हावस , आथँव मँय हा तोरेच ओर ।। अबड़ ममहाथस महर महर , दिखथस तैंहा चारो डहर । आजकाल हे तोरे लहर , बरसाथस तैं अबड़ कहर ।। लागय झन अब तोला नजर,  हाँसत रहिथस बड़े फजर । छोड़बे झन तैं आधा डगर , बन जा तैंहा मोर गजल ।। हाय रे मोर गोंदा फूल , ............................... महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया  ( कवर्धा)  छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com

मनखे मनखे एक

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मनखे मनखे एक सत्य नाम के अलख जगा के , बाबा जी हा आइस । गाँव नगर मा घूम घूम के , झंडा ला फहराइस ।। मनखे मनखे एक हरे जी , भेदभाव झन मानव । सबके एके लहू हवय जी , एला सबझन जानव ।। दया करव सब जीव जन्तु मा , कोनों ला झन मारव । पाप करव झन जान बूझ के , आँखी अपन उघारव ।। बाबा जी के संदेशा ला  ,    घर घर मा पहुचावव । जैत खाम के पूजा करलव , सेत धजा फहरावव ।। सादा जीवन उच्च विचार ल , जे मनखे अपनाइस । जीवन ओकर तरगे संगी , कभू दरद नइ पाइस ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353

जाड़ लागत हे

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जाड़ लागत हे रिमझिम रिमझिम बिहनिया ले , गिरत हावय पानी । कुड़कुड़ कुड़कुड़ जाड़ लागत , याद आ गे नानी । हाथ गोड़ जुड़ा गेहे , तापत हावन आगी । सांय सांय धुंका चलत , का बतावँव रागी । चुनुन चुनुन चुल्हा में,  भजिया ल बनावत हे । गरमे गरम भजिया , लइका ल खवावत हे । चुल्हा तीरन बइठ के , हाथ गोड़ सेंकत हन । बइठे बइठे टी वी मा , शपथ ग्रहण देखत हन । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

छप्पय छंद

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छप्पय छंद ***************************** (1) आ गे कातिक मास , जाड़ हा अब्बड़ लागे । ओढ़े सेटर शाल , तभे अब जाड़ा भागे । किट किट बाजे दाँत,  घाम हा बने सुहाये । काँपत हावय हाथ , बबा हा गाना गाये । भुररी बारय रोज के,  लकड़ी पैरा खोज के । सेंकत हावय हाथ ला , सहलावत हे माथ ला।। *********************************** (2) दाई कलपय आज,  बात बेटा नइ मानय । मरधे भूख पियास , तभो पीरा नइ जानय । बेटा खावय रोज,  बहू सँग आनी बानी । दाई ला तो देय , छोटकुन चटनी चानी । मानय नइ जे बात ला , वोहर खाथे लात ला । सबला अपने मान ले , दुख पीरा ला जान ले ।। **************************************** (3) आथे अब तो रोज,  गाँव में भाजी पाला । जाथे हाट बजार , छाँट के लेथे लाला । राँधे भूँज बघार , विटामिन रहिथे भारी । खाथे जेहा रोज , होय नइ कभू बिमारी । खावव भाजी रोज के,  बारी बखरी खोज के । दाई देथे बाँट के , खाथे सबझन चाट के ।। *************************************** (4) झन कर तैं अभिमान,  प्रेम से नाम कमा ले । काया माटी जान , राम के गुण ला गा ले । जिनगी के दिन चार , संग मा कछु नइ जाये । जाबे खाल

गजरा वाली

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गजरा वाली ( कुण्डलियाँ) गजरा डारय बाल मा , आँखी ला मटकाय । चटक मटक हे रेंगना , बेनी ला लहराय ।। बेनी ला लहराय , माथ मा बिन्दी चमके । कनिहा ला मटकाय , हाथ मा चूरी खनके । लाल गुलाबी होंठ , गजब के मारय नखरा । नागिन जइसे चाल , खोंच के रेंगय गजरा । चूरी पहिरे हाथ मा , खनर खनर खनकाय । बेनी गजरा डार के , महर महर ममहाय ।। महर महर ममहाय , पाँव मा पहिरे पायल । मारे तिरछी नैन , करे वो सबला घायल । लाल लाल हे होंठ , चलाये दिल में छुरी । नथली पहिरे नाक  , बजाये अब्बड़ चूरी।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

सर्दी आई

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सर्दी आई ( चौपाई छंद) सुबह सुबह अब चली हवाएँ  । सर्दी आई जाड़ा लाए । ओढे कंबल और रजाई । हाथ ठिठुरते देखो भाई ।। धूप लगे अब बड़े सुहाना  । बाबा बैठे गाये गाना ।। भजिया पूड़ी सबको भाये । गरम गरम चटनी सँग खाये ।। टोपी पहने काँपे लाला । आँखों में है चश्मा  काला ।। आते झटपट खोले ताला । राम नाम का जपते माला ।। बच्चे आते शोर मचाते । लाला जी को बहुत सताते ।। धूम धड़ाका करते बच्चे । लेकिन मन के बिल्कुल सच्चे ।। ताजा ताजा फल को खाओ । रोज सबेरे घूमने जाओ ।। सुबह शाम अब दौड़ लगाओ । बीमारी सब दूर भगाओ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ m ahendra Dewangan Mati 8602407353

कज्जल छंद

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कज्जल छंद नइहे एसो धान पान । रोवत हावय गा मितान । बूड़े करजा मा किसान । कइसे बचही हमर जान ।।1।। सुक्खा हावय खेत खार । भुँइया मा परय दनगार । कइसे छुटबो अब उधार । माफ कर करजा सरकार ।।2।। ********************************* लहू दान सुन ले संगी बात मान । कर ले तैंहा लहू दान । येला सबले बड़े जान । बाँचे कतको के परान ।।3।। ************************************ नशा झनकर तैंहा नशा पान । येला तैंहा जहर मान । बोले मनखे आन तान । जाथे कतको के परान ।।4।। ************************************** जंगल झाड़ी अब बचाव । पउधा ला के सब लगाव । सुघ्घर दिखही सबो गाँव । सुरताबो गा हमन छाँव ।।5।। ******************************** बाढ़त हावय रोज घाम । चटचट जरथे हमर चाम । पाके रुख मा अबड़ आम । बेंचे ले गा मिलय दाम ।।6।। ******************************** पेड़ लगावव खेत खार । छइहाँ रइही मेड़ पार । सुरताबे तैं बइठ यार । खातू कचरा बने डार ।।7।। ******************************* महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan. Mati  @ विधान- ----- पद संख्या 

मोर छत्तीसगढ़ ( गीत)

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मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे । गुरतुर गुरतुर भाखा बोली , सबके मन ला भा गे ।। मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा .......... ................               भेदभाव नइ जानय इँहा  ,                 सबके सेवा करथे ।                मिल बाँट के खाथे सुघ्घर ,                 दुख पीरा ला हरथे । धरती दाई के सेवा खातिर, बिहना ले सब जागे । मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।                आनी बानी तीज तिहार ला ,                  मिलके सबो मनाथे ।                 ठेठरी खुरमी चीला सोंहारी ,                    घर घर सबो बनाथे । गुलगुल भजिया अबड़ मिठाथे , थरकुलिया मा माँगे । मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।।                  सीधा सादा मनखे इँहा ,                   गारी गल्ला नइ जानय ।                    घर मा आथे कोनों सगा ,                      देवता सही मानय । देख इँहा के रीत रिवाज ला , दुनिया भर मा छा गे । मोर छत्तीसगढ़ महतारी हा , सरग बरोबर लागे ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा)       छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan. Mati @ 01

गिनती (बाल गीत)

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बाल गीत गिनती एक चिड़िया आती है, चींव चींव गीत सुनाती है । दो दिल्ली की बिल्ली हैं  , दोनों जाती दिल्ली हैं । तीन चूहे राजा हैं  , रोज बजाते बाजा हैं । चार कोयल आती हैं  , मीठी गीत सुनाती हैं । पाँच बन्दर बड़े शैतान,  मारे थप्पड़ खींचे कान । छः तितली की छटा निराली , उड़ती है वह डाली डाली । सात शेर जब मारे दहाड़ , काँपे जंगल हिले पहाड़ । आठ हाथी जंगल से आये , गन्ने पत्ती खूब चबाये । नौ मयूर जब नाच दिखाये , सब बच्चे तब ताली बजाये । दस तोता जब मुँह को खोले , भारत माता की जय जय बोले । महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

असली रावण मारो

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असली रावण मारो गली गली रावण घूमत हे , ओकर भुररी बारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। रोज करत हे अत्याचारी , आँखी ला देखाथे । करथे दादागीरी अब्बड़ , तलवार ला उठाथे ।। हिम्मत करके आघू आवव , मिलके सब ललकारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। जुंवा चित्ती सटटा मटका , रोज अबड़ खेलाथे । गाँव गाँव मा दारु बेंच के , पइसा अबड़ कमाथे ।। दिखत हवय गा साव बरोबर , आँखी अपन उघारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। बेटी माई हरण करत हे , इज्जत रोज लूटथे । पर के सुख ला देख नइ सकय , ओकर आँख फूटथे ।। अइसन पापी रावण मन ला , आगी मा अब डारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण  मारो ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 19/10/2018

माँ

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माँ मंदिर में तू पूजा करके,  छप्पन भोग लगाये । घर की माँ भूखी बैठी है , उसको कौन खिलाये । कैसे तू नालायक है रे , बात समझ ना पाये । माँ को भूखा छोड़ यहाँ पर , दर्शन करने जाये ।। भूखी प्यासी बैठी है माँ , दिनभर कुछ ना खाये । मांगे जब वह पानी तो फिर , क्यों उसपर झल्लाये ।। करे दिखावा कितना देखो , मंदिर  चुनर चढ़ाये । घर की माई साड़ी मांगे , उसको तो धमकाये ।। पाल पोसकर बड़ा किया जो , उस पर तरस न खाये । भूल गये संस्कारों को सब , लज्जा भी ना आये ।। कैसे  होगी खुश अब माता,  अपने दिल से बोलो । पछताओगे तुम भी बेटा ,  आँखें अब तो खोलो ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati सार छंद 16 + 12 = 28 मात्रा पदांत --- 2 लघु या 1 गुरु

दीप जलाने आया हूँ

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दीप जलाने आया हूँ (ताटंक छंद) दुर्गा माता के चरणों में  , दीप जलाने आया हूँ । चूड़ी कंगन रोली टीका , चुनरी फीता लाया हूँ ।। दूर दूर से दर्शन करने  , श्रद्धालू सब आते हैं । माता जी के चरणों में सब , श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं ।। मनोकामना पूरी करती , जो मांगो दे देती है । बड़ी दयालू माता जी है  ,  संकट सब हर लेती है ।। मैं बालक तू माता मेरी  , द्वार तुम्हारे आया हूँ । माटी का मैं दीप जलाकर  , काव्य पुष्प ये लाया हूँ ।। ध्यान किया मैं जब जब माता,  अपने दिल में पाया हूँ । चूड़ी कंगन रोली टीका , चुनरी फीता लाया हूँ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @ ताटंक छंद 16 + 14 = 30 मात्रा पदांत ---- 3 गुरु अनिवार्य  

माँ की ममता

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माँ की ममता (सार छंद) माँ की ममता होती प्यारी  , कोई जान न पाये । हर संकट से हमें बचाती , उसकी सभी दुआएँ ।।1।। पल पल नजरें रखती है वह , समझ नहीं हम पाते । टोंका टांकी करती है जब , हम क्यों गुस्सा जाते ।।2।। भूखी प्यासी रहकर भी माँ , हमको दूध पिलाती । सभी जिद्द वह पूरा करती , राह नया दिखलाती ।।3।। सर्दी गर्मी बरसातों में , हर पल हमें बचाती । बुरी नजर ना लगे लाल को , आँचल से ढँक जाती ।।4।। बड़े हुए जब बच्चे देखो , सपने सारे तोड़े । भूल गए उपकारों को अब , माँ से मुँह को मोड़े ।।5।। हुए गुलाम बहू का देखो , माता बोझा लागे । बेटा जो नालायक निकला , कर्तव्यों से भागे ।।6।। सिसक रही है माँ की आत्मा , कोने में है रोती । किस कपूत को जाया है वह , आँसू से मुँह धोती ।।7।। जो करते अनदेखा माँ को , कभी नहीं सुख पाते । घुमता है जब चक्र समय का , जीवन भर पछताते ।।8।। माँ तो ममता की मूरत है  , कभी नहीं कुछ लेती । गिरकर देखो चरणों में तुम  , माफी सब कर देती ।।9।। *माटी* करते सबसे विनती ,  माँ को ना तड़पाओ । रखो ह्रदय में प्रेम भाव से  , घर को स्वर्ग बनाओ ।।10।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरि

जय अंबे माँ

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जय अंबे माँ माता जी के चरणों में मैं  , अपना शीश झुकाता हूँ । कृपा आपकी बनी रहे माँ , नित नित भजन सुनाता हूँ ।। जगमग जगमग ज्योत जले हैं , माता के दरबारों में । रँग रंगोली सजे हुए हैं  , सुंदर तोरण द्वारों में ।। सिंह वाहिनी दुर्गा माता  , चरणों पुष्प चढाता हूँ । कृपा आपकी बनी रहे माँ , नित नित भजन सुनाता हूँ ।। नाच रहे सब झूम झूमकर , भक्तों की आई टोली । शरण पड़े हैं भक्त तुम्हारे  , भर दे माँ खाली झोली ।। जब जब संकट आये माता  , पास तुम्हारे आता हूँ । कृपा आपकी बनी रहे माँ , नित नित भजन सुनाता हूँ ।। माँ ममता की मूरत है तू , कृपा सदा बरसाती है । पूजे जो भी सच्चे दिल से  , घर में खुशियाँ लाती है ।। पूजा पाठ न जानूं माता  , माटी दीप जलाता हूँ । कृपा आपकी बनी रहे माँ , नित नित भजन सुनाता हूँ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendra Dewangan Mati ताटंक छंद 16 + 14 = 30 मात्रा पदांत --- 3 गुरु

भाजी पाला

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भाजी पाला किसम किसम के भाजी पाला , बारी मा बोंवाये हे । चेंच अमारी कांदा भाजी , सुघ्घर के उलहाये हे ।।1।। भाजी पाला खाथे जेहा , नइ तो बीमारी होवे । खून बढ़ाथे अब्बड़ संगी , जिनगी भर नइ तो रोवे ।।2।। सबो विटामिन मिलथे सुघ्घर  , भाजी पाला खाये ले । पइसा भी मिलथे गा अब्बड़  , बारी मा उपजाये ले ।।3।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com ताटंक छंद 16 + 14 = 30 मात्रा पदांत  -- 3 गुरु अनिवार्य

पानी बरसत

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पानी बरसत रिमझिम रिमझिम पानी बरसत , टपकत हे परवा छानी । लइका मन हा  नाचय कूदय , खेलत हे आनी बानी ।।1।। गाँव गली मा पानी भरगे , अब्बड़ बोहाये रेला । भाजी पाला सब बोहागे , ढुलगत हे सब्जी ठला  ।।2।। नोनी बाबू  पानी खेलय ,  छोड़य कागज के डोंगा । कूद कूद के नाचत हावय , बजा बजा के गा पोंगा ।।3।। घर मा तेलइ बइठे दाई ,  राँधत हे भजिया चीला । कुरिया भीतर खुसरे सबझन  , खावत हे माई पीला ।।4।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendra Dewangan Mati ***************************** ताटंक छंद 16 + 14 = 30 मात्रा पदांत में 3 गुरु अनिवार्य

अभिलाषा

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अभिलाषा  ( ताटंक छन्द ) मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।  झुकने दूंगा नहीं  तिरंगा ,  मेरे मन की आशा है ।।1। नित नित वंदन करुँ मै माता,  तुम तो पालन हारी हो । कभी कष्ट ना होने देती , सबके मंगलकारी हो ।।2।। जाति धर्म सब अलग अलग पर , एक यहाँ की भाषा है । मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।3।। शस्य श्यामला धरा यहाँ की , सुंदर पर्वत घाटी है । माथे अपने तिलक लगाऊँ,  चंदन जैसे माटी है ।।4।। कभी खेलते युद्ध यहाँ पर , कभी खेलते पासा हैं । मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।5।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com ताटंक छंद  ( चौबोला छंद) मात्रा- - 16 + 14 = 30 पदांत में-  तीन गुरु अनिवार्य

पर्यावरण पच्चीसी

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पर्यावरण पच्चीसी स्वच्छ रखो पर्यावरण,  सभी लगाओ पेड़ । रहे सदा खुशहाल सब , प्रकृति को मत छेड़ ।।1।। शुद्ध रखो पर्यावरण,  स्वस्थ रहे परिवार । खान पान भी शुद्ध हो , कोइ न हो बीमार ।।2।। चिड़िया आती पेड़ में,  बैठे रहती छाँव । लगे भला पर्यावरण,  सुंदर लगते गाँव ।।3।। सबके दिल में प्रेम हो , पालो मत तुम बैर । नहीं बचा पर्यावरण,  किसकी है फिर खैर ।।4।। कट जाये सब पेड़ तो,  कैसे वर्षा होय । पर्यावरण खराब हो , माथ पकड़ सब रोय ।।5।। नदियाँ नाला शुद्ध हो , शुद्ध रखो सब ताल । पर्यावरण शुद्ध रखो ,नहि आयेगा काल ।।6।। धुआँ धूल से होत है , पर्यावरण खराब । असर पड़त है लोक पर , जानो इसे जनाब ।।7।। हरी भरी धरती दिखे , ग्रीष्म शरद बरसात । स्वच्छ लगे पर्यावरण,  मानो अपनी बात ।।8।। पाॅलिथीन से होत है,  पर्यावरण विनाश । सड़ते नहीं जमीन पर , उगे न कोई घास ।।9।। कूड़ा कचरा डालकर,  बदबू मत फैलाव । साफ रखो परिवेश को , पर्यावरण बचाव ।।10।। दूषित हो पर्यावरण,  नहीं बचेंगे लोग । मुश्किल होगा श्वांस भी , बढ़ जायेगा रोग ।।11।। पेड़ काटकर कर रहे,  जंगल पूरा साफ । पर्यावरण सिसक रहा,  नहीं करेंगे