अपना समाज

अपना समाज
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अलग अलग है जाति सबका
अलग अलग है काम ।
मिलजुल कर रहते हैं सभी
तभी तो बनता है समाज ।
भेदभाव नहीं करते कभी
सबका सहयोग करते हैं ।
जो भी संकट आये किसी पर
सब मिलकर हल करते हैं ।
चौरासी जाति के बंधु मिलकर
एक अथाह समाज बनाये हैं ।
है कुशल विद्वान यहाँ पर
मोती ढूँढ कर लाये हैं ।
मिलते है जब एक जगह
सागर सा दिखाई देता हैं ।
रखते है विचार यहां सब
भाव अपनापन का होता है ।
है अपना उद्देश्य एक ही
आगे सबको बढ़ाना हैं ।
न हो कोई समाज मे पीछे
जन जन में जागृति लाना हैं ।।

महेन्द्र देवांगन "माटी"

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