मोर गांव कहां गंवागे

मोर गांव कहां गंवागे
*******************
मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो
भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों
काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे
नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे
सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा
दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा
मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों
मोर गांव कहां .......................
जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे
सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे
राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय हलो ह आगे
टाटा बाय बाय हाथ हलावत, लइका स्कूल भागे
मोर मया के भाखा बोली, कोन ल मय सुनावों
मोर गांव कहां..............................
छानी परवा सबो नंदावत, सब घर छत ह बनगे
बड़े बड़े अब महल अटारी, गांव में मोर तनगे
नइहे मतलब एक दूसर से, शहरीपन ह आगे
नइ चिनहे अब गांव के आदमी, दूसर सहीं लागे
लोक लाज अऊ संसक्रिती ल, कइसे में बचावों
मोर गांव कहां........................
धोती कुरता कोनों नइ पहिने, पहिने सूट सफारी
छल कपट बेइमानी बाढ़गे, मारत हे लबारी
पच पच थूंकत गुटका खाके, बाढ़त हे बिमारी
छोटे बड़े कोनों मनखे के, करत नइहे चिन्हारी
का होही भगवान जाने अब, कोन ल मय गोहरावों
मोर गांव कहां...............................
जगा जगा लगे हाबे, चाट अंडा के ठेला
दारु भटठी में लगे हाबे, दरुहा मन के मेला
पीके सबझन माते हाबे, का गुरु अऊ चेला
लड़ई झगरा होवत हाबे, करत हे बरपेला
बिगड़त हाबे गांव के लइका, कइसे में समझावों
मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनों खोज के लावो
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन "माटी"
बोरसी - राजिम (छ. ग. )

माटी के रचना

Comments

Popular posts from this blog

तेरी अदाएँ

अगहन बिरसपति

वेलेंटटाइन डे के चक्कर