लालू अऊ कालू
लालू अऊ कालू (कहानी) लाल कुकुर ह बर पेड़ के छांव में बइठे राहे।ओतके बेरा एक ठन करिया कुकुर ह लुडुंग - लाडंग पुछी ल हलावत आवत रिहिस। ओला देख के लाल कुकुर ह आवाज दिस। ऐ कालू कहां जाथस ? आ थोकिन बइठ ले ताहन जाबे। ओकर आवाज ल सुन के कालू ह तीर में आइस अऊ कहिथे --- काये यार लालू काबर बलाथस। लालू ह कहिथे ----- आ थोकिन बइठ ले कहिथों यार। कहां लकर - धकर जात हस। कोनो पारटी - वारटी हे का ? कालू ह कहिथे ---- कहां के पारटी - वारटी यार आजकाल कोनो पूछत नइहे। जिंहा जाबे तिंहा साले मन धुरिया ले भगा देथे। ते बता तोर का हाल - चाल हे। तेहा तो बने चिक्कन - चिक्कन दिखत हस। लालू कहिथे ---- मेंहा तो बने हँव , फेर तोला देखथों दिनो दिन कइसे सुखावत जात हस। बने खात - पियत नइ हस का यार। का चिंता धर लेहे तोला। फोकट में चांउर दार मिलत तभो ले संसो करत हस। डपट के खा अऊ गोल्लर बरोबर घूम साले ल। त कालू कहिथे ----- अरे यार कहां ले फोकट के चांउर दार मिलत हे। मोर तो साले ल राशन कारड नइ बने हे। लालू कहिथे ---- त राशन कारड काबर नइ बनवाय हस रे लेडगा। कालू ------ अरे यार मेंहा सरपंच अऊ सचिव के कई घंऊ चक्कर लगा ड