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लालू अऊ कालू

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लालू अऊ कालू (कहानी) लाल कुकुर ह बर पेड़ के छांव में बइठे राहे।ओतके बेरा एक ठन करिया कुकुर ह लुडुंग - लाडंग पुछी ल हलावत आवत रिहिस। ओला देख के लाल कुकुर ह आवाज दिस। ऐ कालू कहां जाथस ? आ थोकिन बइठ ले ताहन जाबे। ओकर आवाज ल सुन के कालू ह तीर में आइस अऊ कहिथे --- काये यार लालू काबर बलाथस। लालू ह कहिथे ----- आ थोकिन बइठ ले कहिथों यार। कहां लकर - धकर जात हस। कोनो पारटी - वारटी हे का ? कालू ह कहिथे  ---- कहां के पारटी - वारटी यार आजकाल कोनो पूछत नइहे। जिंहा जाबे तिंहा साले मन धुरिया ले भगा देथे। ते बता तोर का हाल - चाल हे। तेहा तो बने चिक्कन - चिक्कन दिखत हस। लालू कहिथे ---- मेंहा तो बने हँव , फेर तोला देखथों दिनो दिन कइसे सुखावत जात हस। बने खात - पियत नइ हस का यार। का चिंता धर लेहे तोला। फोकट में चांउर दार मिलत तभो ले संसो करत हस। डपट के खा अऊ गोल्लर बरोबर घूम साले ल। त कालू कहिथे ----- अरे यार कहां ले फोकट के चांउर दार  मिलत हे। मोर तो साले ल राशन कारड नइ बने हे। लालू कहिथे ---- त राशन कारड काबर नइ बनवाय हस रे लेडगा। कालू ------ अरे यार मेंहा सरपंच अऊ सचिव के कई घंऊ चक्कर लगा ड

आमा खाव मजा पाव

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आमा खाव मजा पाव ******* गरमी के मौसम आते साठ सब झन ला आमा के सुरता आथे।लइका मन ह सरी मंझनिया आमा टोरे ला जाथे , अऊ घर में आ के नून - मिरचा संग खाथे।लइका मन ला आमा चोरा के खाय बर बहुत मजा आथे।मंझनिया होथे तहान आमा बगीचा  मा आमा चोराय ला जाथे। आमा एक प्रकार के रसीला फल होथे।ऐला भारत में फल के राजा बोले जाथे।आमा ला अंग्रेजी में मैंगो कहिथे एकर वैज्ञानिक नाम - मेंगीफेरा हे। आमा के किसम ---- आमा भी कई किसम के होथे अउ सबके सुवाद अलग अलग होथे। जइसे - तोतापरी आमा , सुंदरी आमा , लंगडा आमा , राजापुरी आमा , पैरी अउ बंबइया आमा । फल के राजा  --- आमा ला फल के राजा कहे जाथे । आमा ला फल के राजा  काबर कहिथे जबकि सबो फल हा स्वास्थ्य वर्धक होथे । दरअसल ,भारतीय आमा अपन स्वाद के लिए पूरा दूनिया में मशहूर हे।भारत में मुख्य रूप से 12 किसम के आमा होथे । आमा के उपयोग  ----- आमा के उपयोग   सिरिफ फल के तौर में नही बल्कि  सब्जी , चटनी , पना , जूस , कैंडी , अचार , खटाई, शेक , अमावट (आमा पापड़) अऊ बहुत से खाये - पीये के चीज के सुवाद बढाये बर करे जाथे। आमा के फायदा ------ आमा के बहुत से फायदा भी हे

पुतरी पुतरा के बिहाव

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पुतरी पुतरा के बिहाव पुतरी पुतरा के बिहाव होवत हे , आशीष दे बर आहू जी । भेजत हाँवव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। छाये हावय मड़वा डारा , बाजा अब्बड़ बाजत हे । छोटे बड़े सबो लइका मन , कूद कूद के नाचत हे ।। तँहू मन हा आके सुघ्घर , भड़ौनी गीत ल गाहू जी । भेजत हावँव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। तेल हरदी हा चढ़त हावय , मँऊर घलो सौंपावत हे । बरा सोंहारी पपची लाड़ू , सेव बूंदी बनावत हे ।। बइठे हावय पंगत में सब , माई पिल्ला सब आहू जी । भेजत हावँव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। आये हावय बरतिया मन हा , मेछा ला अटियावत हे । खड़े हावय बर चौंरा मा , मिल के सब परघावत हे ।। नेंग जोग हा पूरा होगे , टीकावन मा आहू जी । भेजत हावँव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। (अक्षय तृतीया विशेष) रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ priyadewangan1997@gmail.com

अक्षय तृतीया के तिहार

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अक्षय तृतीया ( अकती ) के तिहार हिन्दू धर्म में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे । ये तिहार हा मनखे मे नवा जोश अउ उमंग पैदा करथे । आदमी तो रोज काम बुता करत रहिथे फेर काम ह कभू नइ सिराय । येकर सेती हमर पूर्वज मन ह कुछ विशेष तिथि ल तिहार के रुप में मनाय के संदेश दे हे । वइसने एक तिहार अक्छय तृतीया के भी मनाय जाथे । छत्तीसगढ़ में अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे । ये दिन ल बहुत ही शुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत जादा लाभ या पुण्य मिलथे। अइसे वेद पुरान में बताय गेहे। कब मनाथे ---- अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे। अक्छय के मतलब ही होथे जेकर कभू नाश नइ होये । माने जो भी शुभ  काम करबे ओकर कभू क्षय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे। अक्छय तृतीया के महत्व  ----- अक्छय तृतीया ल स्वयं सिद्ध मुहूर्त माने गे हे । ये दिन कोनों भी काम करे बर मुहूर्त देखे के जरुरत नइ परे । जइसे  -- बिहाव करना , नवा घर में पूजा पाठ करके प्रवेश करना , जमीन जायदाद खरीदना , सोना चाँदी गहना खरीदना  । ये स

हे दुर्गा माता

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आये हावँव तोर शरण मा , हे दुर्गा माता । मँय बालक हँव तोरे मइया , हे अटूट नाता ।। सबके दुख ला हरथस मइया , मोरो ला हर दे । झोली खाली हावय माता  , येला तैं भर दे ।। नइ जानव मँय पूजा तोरे , राग द्वेष हर दे । प्रेम करँव मँय सबले मइया , निर्मल मन कर दे ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati छत्तीसगढ़ी रचना विष्णु पद छंद मात्रा  -- 16 +10 = 26 पदांत -- गुरु (2)

का ले के आये

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का लेके तै आये संगी , का ले के जाबे । सरग नरक के सुख दुख ला तैं , सबो इँहे पाबे ।। करत हवस तैं हाय हाय जी , ये सब हे माया । नइ आवय कुछु काम तोर गा , छूट जही काया ।। का राखे हे तन मा संगी , जीव उड़ा जाही । देखत रइही रिश्ता नाता , पार कहाँ पाही ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati विष्णु पद छंद मात्रा  -- 16 + 10 = 26 लक्षण -- डाँड़ (पद) 2  ,   चरण  4 सम - सम चरण मा तुकांत पदांत -- लघु  गुरु या गुरु गुरु

चौपई छंद

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राम नाम के महिमा ( चौपई छंद) राम नाम के महिमा सार । बाकी हावय सब बेकार ।। भज ले तैंहा येकर नाम । बन जाही सब बिगड़े काम ।। जिनगी के हावय दिन चार । झन कर तैंहा अत्याचार ।। मोह मया ला तैंहर त्याग । खुल जाही जी तोरे भाग ।। ****************** (2) हमर देश ( चौपई छंद) सुनलव संगी सुनव मितान । देश हमर हे अबड़ महान ।। सबझन गाथे येकर गान । सैनिक चलथे सीना तान ।। गंगा यमुना नदियाँ धार । हरियर हरियर खेती खार ।। उपजाथे सब गेहूँ धान । खुश रहिथे गा सबो किसान ।। ************** (3) हनुमान जी (चौपई छंद) जय बजरंग बली हनुमान । सबले जादा तैं बलवान ।। महिमा हावय तोर अपार । कोनों नइ पाइन गा पार ।।  राम लला के तैंहर दूत । तोर नाम ले काँपय भूत ।। लेथे जेहा तोरे नाम । तुरते होथे ओकर काम।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़