जाड़ बाढ़त हे
जाड़ बाढ़त हे ****************** सुर सुर सुर सुर हवा चलत हे, जाड़ अब्बड़ बाढ़हत हे बिहनिया के होते साठ डोकरी ह आगी बारत हे। जुड़ पानी ल छुये नइ सकस, तात पानी ल मढहावत हे, लोग लइका के नाक बोहावत, डोकरा ह खिसियावत हे। खोरोर खोरोर खांसत डोकरी, डोकरा ह बगियावत हे, काम बुता जादा झन करे कर डोकरी, डोकरा ह समझावत हे। चुल्हा तीर मे बइठ के डोकरा, बिड़ी ल सुलगावत हे, सेटर साल ल ओढ के डोकरी, आगी ल सिपचावत हे। गरम पानी में नहावत डोकरा जाड़ ह अब्बड़ लागत हे घाम तीरन बइठ के डोकरी, दार भात साग खावत हे। ************ रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम ( छ ग ) Email -- priyadewangan1997@gmail.com