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पुरवाई चले

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  पुरवाई चले ************** सरर सरर पुरवाई चले मन ह मोर डोले झुमरत हाबे डारा पाना कोयली बाग में बोले । संऊधी संऊधी माटी के खुसबू सबके मन ल भाये होत मुंदरहा कूकरा बासत बछरु घलो मेछराये। चहकत हाबे चिरई चिरगुन मुंहू ल अपन खोले सरर सरर पुरवाई चले मन ह मोर डोले । **************** रचना प्रिया देवांगन पंडरिया जिला - कबीरधाम  (छ ग )

गीत - सबके भाग ह जागे

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गीत -सबके भाग ह जागे ********************* रिमझिम रिमझिम गिरे पानी - 2, बरसा के दिन आगे नांगर बइला खेती किसानी, सबके भाग ह जागे -2 बड़े बिहनिया मंगलू कका, नांगर ल सिरजाये रापा कुदारी धरके चैतु , खेत में अपन जाये बासी धरके चलीस बिसाखा-2, अब्बड़ सुघ्घर लागे नांगर बइला खेती  ............................. सरसर सरसर हावा चले , पेड़ घलो लहराये टरर टरर मेचका करे, कोयली गाना गाये फरर फरर उड़े फांफा-2, बतर कीरी आगे नांगर बइला खेती ...............................    कूकरा बासत उठ के पकलू, खातू ल बगराये हरियर हरियर खेत दिखे अब, धान पान लहराये नवा नवेली दुल्हन सहीं -2, खेतखार अब लागे नांगर बइला खेती  ......................... रिमझिम रिमझिम गिरे............................ ******************** रचना महेन्द्र देवांगन माटी

गीत - मय किसान के बेटा हरंव

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गीत - मय किसान के बेटा हरंव ************************** मय किसान के बेटा हरंव-2,जांगर टोर कमाथंव सुत उठ के बड़े बिहनिया, माथ ल मय नवाथंव2 धरती दाई के सेवा खातिर, अपन पसीना बोहाथंव दाई ल सजाये खातिर, रंग रंग फूल लगाथंव करथों मेहनत रातदिन मय-2, पथरा में पानी ओगराथंव मय किसान के बेटा ............................... हरियर हरियर धान पान ह , खेत में जब लहराथे धरती के सिंगार ल देख के,  सबके मन झूम जाथे अन्न पानी के पूरती करथंव-2, खेत में सोना उगाथंव मय किसान के बेटा ............................... मेहनत हमर करम संगी, मेहनत करके जीथन खून पसीना एके करके, पानी पसीया पीथन नइ राहन हम महल अटारी-2, माटी में घर बनाथंव मय किसान के बेटा .............................. **************** रचना महेन्द्र देवांगन माटी

रुख ल झन काटो

रुख ल झन काटो ***************** रुख राई ल झन काटो,जिनगी के अधार हरे एकर बिना जीव जंतु, अऊ पुरखा हमर नइ तरे इही पेड़ ह फल देथे, जेला सब झन खाथन मिलथे बिटामिन सरीर ल, जिनगी के मजा पाथन सुक्खा लकड़ी बीने बर , जंगल झाड़ी जाथन थक जाथन जब रेंगत रेंगत, छांव में सुरताथन सबो पेड़ ह कटा जाही त, कहां ले छांव पाहू बढ़ जाही परदूसन ह, कहां ले फल फूल खाहू चिरई चिरगुन जीव जंतु मन, पेड़ में घर बनाथे थके हारे घूम के आथे,  पेड़ में सब सुरताथे झन उजारो एकर घर ल, अपन मितान बनावो सबके जीव बचाये खातिर, एक एक पेड़ लगावो ******************** महेन्द्र देवांगन माटी

सेल्फी

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सेल्फी ************* जेला देखबे तेला सेल्फी लेवत हे अऊ फोकट के फोकट इस्माइल देवत हे । रंग रंग के पोज में फोटू ल खिंचावत हे टूरी टूरा मन एक दूसर ल देखावत हे । टूरी टूरा ल चिन्हे नइ सकस हाथ ल धरके घूमत हे चाट आइसक्रीम गुपचुप खावत कलब में जाके झूमत हे । बिगड़त हे टूरा बबा गारी देवत हे जेला देखबे तेला सेल्फी लेवत हे। कूकरी पांख सही चूंदी ल कटावत हे रोज के रोज करिया करवावत हे । आनी बानी के किरीम अऊ सेंठ लगावत हे नाक ह तो कटा गेहे अब कान ल छेदावत हे । साठ साल के बुढवा तको मेछा ल टेंवत हे जेला देखबे तेला सेल्फी लेवत हे । *********** रचना महेन्द्र देवांगन माटी

गाय अऊ कुकुर

गाय अऊ कुकुर **************** एक  दिन कक्षा में मेहा लइका मन से पूछेंव के गाँव अऊ सहर में का अंतर हे बताव ? त एक झन लइका ह कथे - गाँव  में गाय पाले जाथे अऊ कुकुर मन गली में घूमत रथे ।सहर में कुकुर पाले जाथे  अऊ गाय मन गली सड़क  में  घूमत रथे । इही अंतर हे गुरुजी । वो हा भले हंसी मजाक  में बताइस  फेर  आज  के सच्चाई  उगल के रखदीस । जइसे जइसे आदमी मन उन्नति  करत जात हे वइसे ओकर रहन सहन अऊ खान पान ह बदलत जात हे । आज आदमी ह गाय के जगा कुकुर ल पोंसे ल धर लेहे ।बड़े बड़े घर में रोज कुकुर के सेवा करत हें।जतका खरचा गाय ल पोंसे में नइहे ओकर  ले जादा खरचा कुकुर के पोंसे में हे। कुकुर ल रोज घुमाय बर लेगथे ओला नास्ता  पानी अऊ रंग रंग के खाना पीना देथे । अतका सेवा गऊ माता के करतीस त ओकर घर में दूध दही के गंगा बोहा जतीस । आज गऊ माता के बुरा हाल होगे हे।कोनो देख रेख करइया नइहे ।गाँव मन में भी चारागाह के कमी के सेती धीरे धीरे रखे बर कम करत जात हे।एकरे सेती हमर देस में दूध दही के कमी होत जात हे। अब आदमी मन ल समझाय बर परही के अच्छा नस्ल के गाय पालो अऊ सही ढंग से देखभाल करे से बहुत फायदा हे। गा

अंधविश्वास

अंधविसवास ****************** असाढ के महिना में घनघोर बादर छाय राहे ।ठंडा ठंडा हावा भी चलत राहे ।अइसने मौसम में लइका मन ल खेले में अब्बड़ मजा आथे। संझा के बेरा मैदान में सोनू, सुनील, संतोष, सरवन, देव,ललित अमन सबो संगवारी मन गेंद खेलत रिहिसे। खेलत खेलत गेंद ह जोर से फेंका जथे अऊ गडढा डाहर चल देथे । सोनू ह भागत भागत जाथे अऊ गडढा में उतर जथे ।ओ गडढा में एक ठन बड़े जान सांप रथे अऊ सोनू ल चाब देथे ।सोनू ह जोर जोर से अब्बड़ रोथे अऊ रोवत रोवत बेहोस हो जथे । सबो संगवारी मन हड़बड़ा जथे अऊ एक दूसर के मुँहू ल देखत रहिथे। सुनील ह कथे - चलो एला सब झन उठाके घर ले जाथन । त संतोष ह कथे - नही पहिली एकर बाबू ल बलाथन । देव कथे - हां पहिली एकर घर के मन ल बलाथन । सरवन कथे - में जल्दी से बलाके लानाथों ।अइसे बोलथे अऊ दउड़त दउड़त जाके ओकर बाबू ल बलाके लानथे । ओकर बाबू ह सोनू ल उठाके घर लेगीस । गाँव भर में हल्ला होगे के सोनू ल सांप चाब दीस। सब आदमी ओकर घर में सकलाय ल धर लीस । एक झन सियान ह बताइस के धमतरी के चेंदवा बइगा ह सांप काटे के पक्का ईलाज जानथे ।उही ल बलाके लानों तभे एहा बांच सकथे।नहीं ते एकर