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गऊ माता ला बचाव

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गऊ माता ला बचाव              गाय ह एक पालतू जानवर हरे । येला हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई अऊ संसार में जतका धरम हे , सब धरम के आदमी मन येकर पालन पोसन करथे । काबर कि गाय से बहुत आमदनी भी  होथे । गाय ही एक अइसे जानवर हरे जेहा जीयत में तो काम आथे,  अऊ मरे के बाद भी एकर चमड़ा अऊ हड्डी तक ह काम आथे । हर प्रकार  के उपयोगी होय के कारन हिन्दू धरम में येला गऊ माता कहे जाथे । गाय ल संसार के सबो देश में पाले जाथे । भोजन --- गाय ह शुद्ध  शाकाहारी हरे। एहा घास,भूसा, पैरा, अऊ पेड़ पऊधा के पत्ती ल खाथे । नस्ल --- भारत में गाय के 30 प्रकार के नस्ल पाय जाथे । जइसे -- देसी, सिंधी, साहिवाल, गिर, देवनी,  हरियानवी आदि । सब नस्ल के गाय ह अलग अलग मात्रा में दूध देथे । गाय के दूध ह बहुत उपयोगी अऊ गुनकारी होथे ।एहा कई प्रकार  के बीमारी से बचत करथे ।               गाय के दूध बेचे से बहुत आमदनी होथे । गाय के दूध से दही, मही, मक्खन, घीव, मिठाई आदि बनाय जाथे । खेती के काम ---- गाय के पिला ल बछरु कहे जाथे । बछरु ह बड़े होके बइला बनथे । बइला ह खेती किसानी के काम आथे । हमर देस ह कृषि प्रधान  देश

गीतिका छंद

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गीतिका छंद 1 मान ले तैं बात संगी , झूठ कहना छोड़ दे । नाम होही तोर जग मा , पाप ले मुँह मोड़ दे । दान कर ले रोज के तैं , दीन दुखिया जान के । मीठ बानी बोल ले तैं , आज रिश्ता मान के । ************************************** 2 ज्ञान के भंडार भर दे , शारदे माँ आज तैं । हाथ जोंड़व पाँव परके , राख मइयाँ लाज तैं । कंठ बइठो मातु मोरे , गीत गाँवव राग मा । होय किरपा तोर माता,  मोर सुघ्घर भाग मा । तोर किरपा होय जे पर , भाग वोकर जाग थे । बाढ़ थे बल बुद्धि वोकर , गोठ बढ़िया लाग थे । बोल लेथे कोंदा मन हा , अंधरा सब देख थे । तोर किरपा होय माता  , पाँव बिन सब रेंग थे । *************************************** 3 योग ला तैं रोज कर ले , भाग ही सब रोग हा । जाग तैंहा आज संगी , जाग ही सब लोग हा । देह रइही तोर सुघ्घर , बात ला तैं मान ले । रोग राई दूर होही , सार येला जान ले । ************************************ 4 जाड़ लागय जोर से जी , ओढ सेटर शाल ला । ताप आगी बइठ के तैं , सेक दूनो गाल ला । बाँध ले तैं कान मुँह ला , हवा अब्बड़ आत हे । बनत हावय गरम भजिया , पेट भर सब खात हे । ********

छन्न पकैया

छन्न पकैया छन्न पकैया छन्न पकैया,  आया नया जमाना । बात नहीं अब माने बच्चा , दिनभर गाये गाना ।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , जूता पहने बाटा । पैर नहीं छूते हैं अब तो , केवल करते टाटा ।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , घूमे बनकर हीरो । धूम धड़ाका करते रहते ,  पढ़ने में है जीरो ।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , बात करे वह चोखा । मीठी मीठी बातें करके  , देते सबको धोखा ।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , राज बहुत है गहरा । छूप छूप कर बातें करते , देते रहते पहरा ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353

मकर संक्रांति मनाबो

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मकर संक्रांति तिल गुड़ के लाड़ू ला , मया बाँध के खाबो । आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।। दक्षिण में हे सूरज हा , उत्तर में  अब जाही । पूस के जाड़ा अब्बड़ हाबे , वहू अब भगाही ।। आनी बानी रंग रंग के,  पतंग घलो उड़ाबो । आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।। सुत उठ के बिहनिया ले , नदियाँ नहाय बर जाबो । दीन दुखी ला दान करके , देवता दर्शन पाबो ।। मकर रेखा में जाही सूरज  , दिन हा बाढ़त जाही । आवत हावय पूस पुन्नी हा , छेरछेरा घलो ह आही ।। तिल गुड़ के बंधना कस , सबो समाज बंधाबो । आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।। महेन्द्र देवांगन माटी ( बोरसी - राजिम) 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

छत्तीसगढ़ वंदना

महानदी अउ अरपा पैरी , इंहा के मैहर थाती अंव । छत्तीसगढ़ के माटी अंव , मय छत्तीसगढ़ के माटी अंव । देवभोग बस्तर सरगुजा , सबमे रतन भराये हे । राजिम रायपुर बिलासपुर में,  मया के बोली समाये हे । दर्शन कर लो महामाया के, केशकाल के घाटी अंव । छत्तीसगढ़ के माटी अंव -------

नवा साल

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नवा साल धरे हवय मुरगा मटन , बोतल ल हलावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । वाह रे टेसिया टूरा , गली मा मटमटावत हे । चुँदी हावय कुकरी पाँख , हनी सिंह जइसे कटवावत हे । सबो संगवारी मिल के , पिकनिक में जावत हे । घोण्डे हावय सूरा सही  , नवा साल मनावत हे । नशा पान के आदी हावय , गुटखा तंबाखू खावत हे । नाचत हावय डी जे में  , रंग रंग के गाना गावत हे । लाज शरम तो बेचा गेहे , कनिहा ला मटकावत हे । नाक तो पहिली ले कटा गेहे , अब कान ला छेदावत हे । भट्टी डाहर चुप्पे जा के , लाइन ला लगावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । यहा का जमाना आ गे , बबा हा खिसियावत हे । टूरा मन हा बात नइ माने , बोतल ला हलावत हे । धरे हे मोबाइल ला , रंग रंग के गोठियावत हे । टूरी टूरा हाथ धर के , कनिहा ला मटकावत हे । अपन संस्कृति ला भुला के , विदेशी ला अपनावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । नशा पान ला छोड़ंव संगी , सादा जीवन बीतावव । छोड़ विदेशी रिवाज ला , अपन संस्कृति अपनावव । अंग्रेजी साल छोड़ के , हिन्दू नव वर्ष मनावव । इंहा के रीति रिवाज ला , दुनिया में बगरावव

हाय रे मोर गोंदा फूल

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हाय रे मोर गोंदा फूल  हाय रे मोर गोंदा फूल , आँखी आँखी तैंहा झूल । चुकचुक ले दिखथस तैंहा , कइसे जाहूँ तोला भूल ।। मोहनी कस रुप हे तोर , लेथस तैंहा जीव ला मोर । का जादू तैं डारे हावस , आथँव मँय हा तोरेच ओर ।। अबड़ ममहाथस महर महर , दिखथस तैंहा चारो डहर । आजकाल हे तोरे लहर , बरसाथस तैं अबड़ कहर ।। लागय झन अब तोला नजर,  हाँसत रहिथस बड़े फजर । छोड़बे झन तैं आधा डगर , बन जा तैंहा मोर गजल ।। हाय रे मोर गोंदा फूल , ............................... महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया  ( कवर्धा)  छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com