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अभिलाषा

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अभिलाषा  ( ताटंक छन्द ) मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।  झुकने दूंगा नहीं  तिरंगा ,  मेरे मन की आशा है ।।1। नित नित वंदन करुँ मै माता,  तुम तो पालन हारी हो । कभी कष्ट ना होने देती , सबके मंगलकारी हो ।।2।। जाति धर्म सब अलग अलग पर , एक यहाँ की भाषा है । मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।3।। शस्य श्यामला धरा यहाँ की , सुंदर पर्वत घाटी है । माथे अपने तिलक लगाऊँ,  चंदन जैसे माटी है ।।4।। कभी खेलते युद्ध यहाँ पर , कभी खेलते पासा हैं । मातृभूमि पर शीश चढाऊँ,  एक यही अभिलाषा है ।।5।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com ताटंक छंद  ( चौबोला छंद) मात्रा- - 16 + 14 = 30 पदांत में-  तीन गुरु अनिवार्य

पर्यावरण पच्चीसी

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पर्यावरण पच्चीसी स्वच्छ रखो पर्यावरण,  सभी लगाओ पेड़ । रहे सदा खुशहाल सब , प्रकृति को मत छेड़ ।।1।। शुद्ध रखो पर्यावरण,  स्वस्थ रहे परिवार । खान पान भी शुद्ध हो , कोइ न हो बीमार ।।2।। चिड़िया आती पेड़ में,  बैठे रहती छाँव । लगे भला पर्यावरण,  सुंदर लगते गाँव ।।3।। सबके दिल में प्रेम हो , पालो मत तुम बैर । नहीं बचा पर्यावरण,  किसकी है फिर खैर ।।4।। कट जाये सब पेड़ तो,  कैसे वर्षा होय । पर्यावरण खराब हो , माथ पकड़ सब रोय ।।5।। नदियाँ नाला शुद्ध हो , शुद्ध रखो सब ताल । पर्यावरण शुद्ध रखो ,नहि आयेगा काल ।।6।। धुआँ धूल से होत है , पर्यावरण खराब । असर पड़त है लोक पर , जानो इसे जनाब ।।7।। हरी भरी धरती दिखे , ग्रीष्म शरद बरसात । स्वच्छ लगे पर्यावरण,  मानो अपनी बात ।।8।। पाॅलिथीन से होत है,  पर्यावरण विनाश । सड़ते नहीं जमीन पर , उगे न कोई घास ।।9।। कूड़ा कचरा डालकर,  बदबू मत फैलाव । साफ रखो परिवेश को , पर्यावरण बचाव ।।10।। दूषित हो पर्यावरण,  नहीं बचेंगे लोग । मुश्किल होगा श्वांस भी , बढ़ जायेगा रोग ।।11।। पेड़ काटकर कर रहे,  जंगल पूरा साफ । पर्यावरण सिसक रहा,  नहीं करेंगे

आज के नेता

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आज के नेता  ( उल्लाला छंद) नेता हावय आज के  , कौड़ी ना हे काज के । माँगय पइसा रोज के  , जेब मा धरथे बोज के ।।1।। खावत रहिथे पान ला , खजवावत हे कान ला । मुंहू दिखथे लाल जी  , करिया करिया बाल जी ।।2।। सादा सादा भेष हे , मारत अब्बड़ टेस हे । मन मा हावय पाप जी  , देखावा सब जाप जी ।।3।। माँगय सबकर वोट जी  , बाँटय सब ला नोट जी । जोड़त हावय हाथ ला , नइ छोड़व मँय साथ ला ।।4।। जाथे जीत चुनाव जी , ताहन भजिया खाव जी । नइ देखे वो गाँव ला , राखे नइ गा पाँव ला ।।5।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com उल्लाला छंद 13 + 13 = 26 मात्रा

स्वच्छता अभियान

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स्वच्छता अपनाओ आओ प्यारे मिलजुल करके , सब कोई हाथ बढायेंगे । बीमारी अब पास न आये  , गंदगी तुरंत भगायेंगे ।।1।। कूड़ा कचरा को मत फेंको , एक जगह सब डाले जाओ । कागज झिल्ली पुट्ठा रददी  , गड्डे  डालो आग लगाओ ।।2।। जगह जगह ना थूकों प्यारे   , अब स्वच्छ रखो दीवारों को । समझा दो सब खाने वाले  , नशा पान के मतवालों को ।।3।। रहे स्वच्छ परिवेश हमारा , हम सब की भागीदारी है । साफ सुथरा पर्यावरण हो  , हम सबकी जिम्मेवारी है ।।4।।  हाथ बढाओ आगे आओ ,  हरियाली मिलकर लायेंगे । झूम उठेगी सारी धरती  , पौधे भी खूब लगायेंगे ।।5।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com 16 + 16 = 32 मात्रा

पेड़ लगाओ

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पेड़ लगाओ आओ मिलकर पेड़ लगायें, सबको मिलेगी छाँव । हरी-भरी हो जाये धरती,  मस्त दिखेगा गाँव ।।1।। पेड़ों से मिलती हैं लकड़ी , सबके आती काम । जो बोते हैं बीज उसी का, चलता हरदम नाम ।।2।। सुबह शाम तुम पानी डालो , इतना कर उपकार । गाय बैल से उसे बचाओ , बनकर पहरेदार ।।3।। आओ मिलकर पेड़ लगायें,  सबको मिलेगी  छाँव । हरी-भरी हो जाये धरती, मस्त दिखेगा गाँव ।। 4।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com सरसी छंद मात्रा- --- 16 +11 = 27 पदांत -- गुरु लघु

शारदे वंदन

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शारदे वंदन चरण कमल में तेरे माता,  अपना शीश झुकाते हैं । ज्ञान बुद्धि के देने वाली,  तेरे ही गुण गाते हैं ।। श्वेत कमल में बैठी माता,  कर में पुस्तक रखती है । राजा हो या रंक सभी का , किस्मत तू ही लिखती है ।। वीणा की झंकारे सुनकर,  ताल कमल खिल जाते हैं । बैठ पुष्प में तितली रानी,  भौंरा गाना गाते हैं ।। मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे , ज्ञान बुद्धि तू देती है । शब्द शब्द में बसने वाली,  सबका मति हर लेती है ।। मैं अज्ञानी बालक माता,  शरण आप के आया हूँ । झोली भर दे मेरी मैया,  शब्द पुष्प मैं लाया हूँ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 07/09/18 mahendradewanganmati@gmail.com कुकुभ छंद मात्रा  ---- 16 +14 = 30 पदांत दो गुरु अनिवार्य

बादर गरजे ( कुकुभ छंद)

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बादर गरजे बादर गरजे बिजली चमके,  अब दादुर शोर मचाये । रहि रहि के जियरा हा काँपे,  जब करिया बादर  छाये ।।1।। बिजली चमके अइसे जइसे,  कोनों हा खींचे फोटू । डर के मारे भागे सबझन,  आँखी मूंदे जी छोटू ।।2।। गिरय झमाझम पानी अब्बड़,  बइहा पूरा गा आये । घर दुवार मा पानी भरगे,  मनखे तक हा बोहाये ।।3।। जब जब बड़थे अत्याचारी ,  बाढ़ अइसने  गा आथे । कोप अपन देखाथे अब्बड़,  सब ला बोहा ले जाथे ।।4।। काटव झन अब जंगल झाड़ी, सब  मिल के  पेड़ लगावौ । तभे बाँचही जीव हा सँगी , अब पर्यावरण बचावौ ।।5।। ************************* (2) प्रेम सबो से कर ले बंदे , नाम तोर रहि जाही जी । झनकर तैंहा दुवा भेद ला , काम तोर नइ आही जी ।।1।। मया पिरित ला राखे राहव,  मीठ मीठ बोलव बोली । घूम घाम ले दुनिया मा तैं , झन खुसरे राहव खोली ।।2।। दया धरम ला तैंहा कर ले , डारव सबझन बर दाना । भूखा प्यासा घूमत हावय , वोला देवव तुम खाना ।।3।। रखबे कतको पइसा तैंहा , काम तोर नइ आही जी । छूट जही जब तोर जीव हा,  सँग मा कछु नइ जाही जी ।।4।। ************************* (3) घर के मुखिया दारू पी के  , झगरा रोज मतावे जी । ग