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बादर आवय

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उमड़त घुमड़त बादर आवय , गिरय झमाझम पानी । आ गे सावन महीना सँगी , चूहत परछी छानी ।। गाँव गली मा पानी भरगे,  बोहावत हे रेला । लइका मन सब नाचत कूदत , खेलत हावय खेला ।। खेत खार मा चिखला मातय,  धरथे अब्बड़ लेटा । दाई हा चेतावत हावय , बने रेंगबे बेटा ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati नियम -- मात्रा 16 + 12 = 28 तुकांत के नियम  --- दू दू डाँड़ मा ( सम सम चरण मा ) आखिर मा एक बड़कू ( गुरु ) या दू नान्हे  (लघु ) होना चाहिए । तुकांत मा दू बड़कू (गुरु ) आये ले छन्द अउ गुरतुर हो जाथे ।

माटी के चोला ( सार छन्द )

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माटी के चोला  राम भजन ला गा ले भैया,  इही काम गा आही । माटी के चोला हा संगी , माटी मा मिल जाही ।। कतको धन दौलत ला रखबे , काम तोर नइ आये । छूट जही जब जीव ह तोरे,  सँग मा कुछु नइ जाये ।। देखत रइही नाता रिश्ता,  बरा भात ला खाही । माटी के चोला हा संगी , माटी मा मिल जाही ।। मया मोह के फेरा मा तैं,  दुनिया सबो भुलाये । काम करे तैं मर मर सब बर , पाछू बर पछताये ।। कर ले सेवा दीन दुखी के,  नाम तोर रहि जाही । माटी के चोला हा संगी , माटी मा मिल जाही ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati नियम -- मात्रा 16 + 12 = 28 तुकांत के नियम  --- दू दू डाँड़ मा ( सम सम चरण मा ) आखिर मा एक बड़कू ( गुरु ) या दू नान्हे  (लघु ) होना चाहिए । तुकांत मा दू बड़कू (गुरु ) आये ले छन्द अउ गुरतुर हो जाथे ।

अमृत ध्वनि छंद

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अमृत ध्वनि छन्द (1) आइस सावन झूम के, दिखय घटा घनघोर । बिजुरी चमके जोर से, नाचय वन मा मोर ।। नाचय वन मा , मोर पंख ला, अपन उठाके, देखय सबझन, आँखी फारे, हँसय लुकाके । चिरई चिरगुन, ताली पीटे, दादुर  गाइस, सबके मन मा, खुशी समागे, सावन आइस । (2) नाँगर बइला फाँद के,  जोंतत खेत किसान । खातू कचरा डार के,  बोंवत हावय धान ।। बोंवत हावय , धान पान हा , एसो होही, पउर साल के, रोना अब तो, नइ तो रोही । करथे सबझन, काम बरोबर, चलथे जाँगर, कोड़ा देवय , दवई डारय , फाँदय नाँगर । (3) गुटका पाउच खाय जे , होथे अब्बड़ रोग । खाथे जेहा रोज के, भुगते अइसन लोग ।। भुगते अइसन, लोग मुँहू मा , केंसर होथे, पइसा खोथे,  पीरा करथे,  अब्बड़ रोथे । झगरा होथे,  गारी खाथे, सहिथे मुटका , बात मान ले , कान पकड़ ले , झन खा गुटका । (4) घर के अँगना मा सबो , तुलसी पेड़ लगाव । पानी देवव रोज के,  शुद्ध हवा ला पाव ।। शुद्ध हवा ला , पाव बिमारी, नइ तो आवय, सरदी खाँसी, भगा जथे जे, पत्ती खावय । दीया बारव, पूजा कर लो, पाँव पर के, अब्बड़ गुन हे, एला जानव, तुलसी घर के । (5) पीना छोड़व दारु ला , करथे येहा नाश । जाब

भाजी पाला

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भाजी पाला भाजी पाला हा बने , गरमी माह सुहाय । फोरन दे के राँध ले , अब्बड़ भात खवाय ।। भौजी जाय बजार मा , लावय भाजी चेंच । भैया मन भर खात हे , लमा लमा के घेंच ।। तिंवरा भाजी देख के,  मन हा बड़ ललचाय । चना दार मा राँध ले , आगर भात खवाय ।। मुनगा भाजी खाय के , मुसुर मुसुर मुसकाय। कतको हरथे रोग ला , दांत बने चमकाय ।। कांदा भाजी मा घलो, अबड़ विटामिन पाय । ताकत आवय देंह मा , बबा बतावय राय ।। दार संग मा राँध ले , सुघ्घर भाजी लाल । खाथे जेहा रोज के , चिक्कन दिखथे गाल ।। तरिया नदियाँ तीर मा , चुनचुनिया ला पाय । चटनी सहीं बनाय के,  चाट चाट के खाय ।। करमत्ता के साग मा , करमा माता आय । भोग लगा के प्रेम से,  आशीरवाद  पाय ।। पटवा भाजी राँध ले , सँग मा लहसुन डार । परोसीन हा सूंघ के,  टपकावत हे  लार ।। मखना हावय नार मा , भाजी ला तैं टोर । खाये के मन आज हे , झोला मा ले जोर ।। चौंलाई के चाल ला , जानत नइहे कोन । खा के बड़ गुन गात हे , बहू लगावय फोन ।। भाजी मा हे गुन बहुत  , जेहा येला खाय । होय बिमारी दूर जी,   ताकत अब्बड़ आय ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ @M

बेटी बेटा

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बेटी बेटा भेदभाव ला छोड़ के  , दूनों ला तँय मान । बेटी  बेटा  एक  हे ,  कुल के दीपक जान ।। रौशन करथे एक दिन , दो दो कुल के नाम । बेटी बने पढ़ाव जी  , बनही बिगड़े काम ।। पढ़े लिखे से होत हे,  घर मा शिष्टाचार । गारी गल्ला छोड़ के,  सीखय सब संस्कार ।। बेटी बेटा संग मा , सब ला बने पढ़ाव । भरही झोली ज्ञान के,  जग मा नाम कमाव ।। मनखे मनखे एक हे , झन कर कोनों भेद । जेमा तैंहा खाय हस , ओमे झनकर छेद ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati दोहा -- 13 +11 = 24 मात्रा

गणेश वंदना ( दोहे )

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गणेश वंदना ( दोहा छन्द ) ************* पहिली पूजा तोर हे , गण नायक महराज । हाथ जोड़ विनती हवय , पूरा कर दे काज ।। आये हावन तोर कर , लेके छप्पन भोग । सबो कष्ट ला दूर कर , माँगत हे सब लोग ।। हाथी जइसे सूड़ हे , सूपा जइसे कान । सबके मन के बात ला , तेंहा लेथस जान ।। लड्डू मोदक खाय के , मुसवा करे सवार । तोर बुद्धि के सामने ,  पाय न कोनों  पार ।। नइ जानँव जी पाठ ला , मँय बालक नादान । भूल चूक माफी करव,  हाँवव मँय अनजान ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @ मात्रा 13 + 11 = 24

राखी के तिहार

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राखी के तिहार (महेन्द्र देवांगन माटी ) सावन के पावन महीना में, आइस राखी तिहार । राखी के बंधन में हावय , भाई बहन के प्यार । सजे हावय दुकान में,  आनी बानी के राखी । कोन ला लेवँव कोन ला छोंड़व , नाचत हावय आँखी । छांट छांट के बहिनी मन , राखी ला लेवत हे । किसम किसम के मिठाई ले के , पइसा ला देवत हे । भैया के कलाई में,  राखी ला बांधत हे । रक्षा करे के वचन,  भाई से मांगत हे । भाई बहिन के पवित्र प्रेम,  सबले हावय प्यारा । हमर देश के संस्कृति,  सबले हावय न्यारा । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati